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________________ ... प्रश्नों के उत्तर संयम- शुभ- भावना । समता सर्वभूतेषु, संयम - शुभ रौद्र परित्यागस्तद्धि सामायिक व्रतम् ॥ सब जीवों पर समता-समभाव रखना, पांच इन्द्रियों तथा तीन योगों को संयम में लगाना, हृदय में शुभ भावना, शुभ संकल्प रखना, आर्त- रौद्र दुर्ध्यानों को त्याग करके धर्म ध्यान का चिन्तन-मनन करना, सामायिक व्रत कहा गया है । सामायिक व्रत की साधना करने वाले व्यक्ति को प्रत्येक प्राणों के साथ मैत्री भाव रखना चाहिए। सा- मायिक को जीवन में साकार रूप देने वाले व्यक्ति का प्राणी मात्र के साथ प्रेम स्नेह का वर्ताव करना चाहिए, सबके साथ मंत्रा माव रखना चाहिए | अपने से अधिक गुण युक्त व्यक्ति का देख कर प्रसन्न होना चाहिए। अपने साथी को आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक जावन में प्रगति करते देख कर प्रसन्न हाना चाहिए, न कि जलना चाहिए । दुःखी एवं संतप्न जीवों के प्रति हृदय में दया एवं करुणा होना चाहिए और विपरोत प्रवृत्तियों करने वालों के प्रति भो घृणा एवं द्वेष बुद्धि नहीं, किन्तु तटस्थ भावना होनी चाहिए। प्राचार्य अमिगत सूरि के • शब्दों में यह है सामायिक का विराट रूप - • " • 'सत्त्वेषु मैत्री, गुणिषु प्रमोद, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । माध्यस्थ्यभाव विपरीतवृत्ती, सदा ममात्मा विदधातु देव ॥ ५२० • सामायिक को साधना का काल गृहस्थ के लिए ४८ मिण्ट का बताया गया है । इसका यह तात्पर्य नहीं है कि ४८ मिण्ट के बाद वह विषम भाव में प्रवृत्ति करे । गृहस्थ की सामायिक साधना की दृष्टि से ४८ मिण्ट के लिए है, न कि भावों की दृष्टि से । क्योंकि सामायिक की साधना शिक्षा व्रत है प्रीय शिक्षा के लिए समय सदा मर्यादित रहता है, परन्तु उसका उपयोग पूरे जीवन के लिए है । आप देखते हैं: ''
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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