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________________ ५१९..... . एकादश अध्याय ... है। ये शिक्षाक्त पूर्वगृहीत व्रतों के परिपालन में दृढ़ता लाने में सहायक होते हैं। ये शिक्षाक्त चार हैं- १-सामायिक व्रत, २-देशावकाशिक व्रत, ३-पौषधोपवास व्रत और ४-अतिथि-संविभाग व्रत। इनका अर्थ इस प्रकार है - सामायिक व्रत - सामायिक शब्द सम + आय के संयोग से बना है। सम अर्थात समभाव और प्राय का अर्थ है- लाभ । अस्तु,जिस धार्मिक अनुष्ठान से समभाव की प्राप्ति होती है, राग द्वेष, वैर-विरोध कम होता है, विषय-वासना एवं काम-क्रोध की अग्नि शान्त होती है, सावद्य-पापयुक्त प्रवृत्तियों का त्याग किया जाता है, उसे सामायिक कहते हैं। . जैनागमों में सामायिक का विस्तृत विवेचन किया गया है । सामायिक जीवन-पर्यन्त के लिए भी स्वीकार की जाती है और कुछ .. समय के लिए भी। कम से कम ४८ मिण्ट के लिए स्वीकार की जाती . . है । साधु जीवन-पर्यंत के लिए सावध प्रवृत्ति का त्याग कर देता है, । परन्तु गृहस्थ के लिए इतना त्याग कर सकना कठिन है । उसका लक्ष्य पूर्ण त्याग को स्वीकार करने का होता है, परन्तु पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय दायित्व से आबद्ध होने के कारण वह चाहते हुए भी पूर्ण साधना को साध नहीं सकता। इसलिए उसे प्रतिदिन ४८ मिण्ट तक सामायिक की साधना अवश्य करनी चाहिए। सामायिक की साधना जीवन को शुद्ध, सात्त्विक एवं पवित्र बनाती है। वस्तुतः . सामायिक व्रत श्रावक के लिए दो घड़ो (४८ मिण्ट) का आध्यात्मिक . स्नान है, जो जीवन पर लगे हुए पाप मल को दूर करता है। और ... अहिंसा, सत्य श्रादि सद्गुणों को साधना को स्फूतिशील बनाता है। : सामायिक की व्याख्या करते हुए एक नाचार्य ने लिखा है
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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