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________________ प्रश्नों के उत्तर : थावक खेती तो करते ही थे । अतः उनके जीवन से एवं प्रागमों में खेती को आर्य कर्म बतलाने से, यह स्पष्ट हो जाता कि खेती का . काम महापाप, महारंभ एवं कर्मादान में नहीं है। इसे फोड़ी कर्म मानना सिद्धांत से विपरीत है। . . . ... ... .... ६-दन्त-वणिज्जे- हाथी तान्त आदि का व्यापार करना.... दन्त वाणिज्य कर्म कहलाता है। उक्त कर्म में उपलक्षण से शंख, सीप हड्डी आदि के वाणिज्य का भी समावेश हो जाता है। हाथी का दान्त लाने वालों को हाथी दान्त लाने का आर्डर देना या उन से . खरोद कर बेचना महापाप का कारण है । क्योंकि वे लोग पैसा कमाने : के लिए हाथियों को मार कर उनका दान्त लाएंगे। इसी तरह शंख, हड्डी, सीप आदि के लिए भी वे लोग अनेक जीवों का प्राण नष्ट करते हैं । अतः श्रावक को ऐसा व्यापार नहीं करना चाहिए। ..: ७-लक्खवणिज्जे- लाख निकालने में अनेक त्रस प्राणियों की हिंसा . होती है । इसलिए श्रावक को लाख का व्यापार नहीं करना चाहिए। .., -रसवणिज्जे- शराब आदि का व्यापार नहीं करना । कुछ लोग गुड़, तेल, दूध-दही के व्यापार को भी रस वणिज्जे कर्म में गिनते हैं। परन्तु यह मान्यता ठीक नहीं है । टीकाकार ने शरावादि के व्यापार को रसवाणिज्य में गिनाया है- "रसवाणिज्य सुरादिविक्रयः।" इसलिए. श्रावक को शराब आदि.का व्यापार नहीं करना चाहिए। ........ ....... . ९-विषवणिज्जे- अफीम, संखिया आदि विष का व्यापार करना। क्योंकि इन विषाक्त वस्तुओं के सेवन से मृत्यु तक हो जाती है या व्य: क्ति उन्मत्त हो जाता है।इस तरह विष जीवन के लिए नुकसानप्रद वस्तु .. है । इस लिए श्रावक को विष का व्यापार नहीं करना चाहिए।.. १० केसवणिज्जे-- केशों के . व्यापार का अर्थ है- केशवाली दासि.: यों का व्यापार करना या स्त्रियों के सुन्दर बालों को बेचना । परन्तु
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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