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________________ ' ५०९ एकादश अध्याय: खनिज पदार्थों का व्यापार करना फोड़ी कर्म कहलाता है। बड़ी-बड़ी खानों का ठेका लेकर उन्हें खुदवाना और उस में से निकले हुए खनिज पदार्थों को वेचना तथा ठेकेदार को प्रार्डर दे कर खनिज पदार्थों को व्यापार के लिए मंगवाना महापाप का कार्य है। क्योंकि खानों को खोदने में अनेकों छोटे-मोटे प्राणियों की हिंसा होती है खान-दुर्घटना में मनुष्यों के प्राणों का नाश भी हो जाता है श्रावक को ऐसा महारंभ का कार्य नहीं करना चाहिए । . । कई बार । इसलिए कुछ लोग कृषि कर्म को भी फोड़ी कर्म में गिनते हैं, परन्तु यह मान्यता ठीक नहीं है । क्योकि आगम में फोड़ी कर्म को महारंभ और महापाप का कार्य माना गया है । परन्तु खेती को अल्पारम्भ का कार्य माना गया है । आगम में कृषि कर्म को आर्य कर्म कहा गया है । इसलिए श्रावक के लिए कृषि कर्म निषिद्ध नहीं है । श्रानन्द आदि श्रावक स्वय खेती करते थे । उपासकदशांग सूत्र में वर्णन आता है कि प्रानन्द श्रावक के ५०० हल ज़मीन थो और खेती का माल ढोने के लिए उसने ५०० गाड़ियों को मर्यादा रखी थी इससे स्पष्ट हो जाता है कि कृषि कर्मादान नहीं है । यदि कृषि कर्मादान में होती तो आनन्द श्रावक कभी भी खेती नहीं करता और यदि करता भी तो उसके व्रत विशुद्ध नहीं रहते । क्योंकि कर्मादान श्रावक के लिए सर्वथा त्याज्य है । उनका सेवन करना तो दूर रहा, वह मन से चिन्तन भी नहीं कर सकता, न दूसरे को उक्त कार्य करने की प्रेरणा दे सकता है और न उक्त कार्य करने वाले की प्रशंसा ही कर सकता है । वह तीन करण और तीन योग से कुर्मादान का त्यागी होता है । आनन्द श्रावकं था और वह निरतिचार व्रतों का परिपालन करता था । इस बात को भगवान महावीर ने स्वयं कहा है । अतः यह स्पष्ट है कि उसने कभी भी कर्मादान का सेवन नहीं किया। परन्तु वह एवं अन्य *
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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