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________________ : ४८३ ............ एकादश अध्याय . .. . . के मानवीय अधिकारों का अपहरण करते हैं, वे भी धर्म-नेता नहीं.. . . समाज एवं शासन के चोर हैं। . जमींदार, मिल एवं फैक्ट्रियों के मालिक अपना स्वार्थ साधने के लिए या यों कहिए अपनी पूँजी बढ़ाने हेतु किसानों,मजदूरों एवं श्रमिकों का शोषण करते हैं, उन से समय एव शक्ति से अधिक काम लेते हैं, उनसे बेगार लेते हैं- तनख्वाह या मजदूरी दिए बिना काम लेते हैं, उनकी मेहनत के पंसों को काटने का प्रयत्न करते हैं और उन के हितों. * का ख्याल नहीं रखते हैं, वे भी समाज के दुश्मन हैं, चोर हैं। - वे लालची साहूकार जो मर्यादा से अधिक सूद लेते हैं, कम रुपए दे कर अधिक रुपयों का खत लिखवाते हैं तथा गिरवी रखे हुए माल को हजम कर जाने का प्रयत्न करते हैं, वे भी चोर हैं। .. वे सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी जो रिश्वत लिए बिना कोई - काम नहीं करते तथा वे मकान एवं दुकान मालिक जो. मकान एवं दुकान के उचित किराए से अधिक लेते हैं और साथ में पगड़ी-अतिरिक्त धन लेते हैं, वे भी चोरी करते हैं। ... ... वे. वकील-बरिस्टर. एवं वैद्य-डाक्टर भी चोर हैं- जो सेवा एवं सद्भावना की दृष्टि से कार्य न करके केवल. पैसा लूटने के लिए वकालत या डाक्टरी का धन्धा करते हैं । अर्थात् पैसे के लोभ में आकर झूठे मुकदमें को सच्चा बनाने का प्रयत्न करते हैं तथा एक बीमार व्यक्ति से अधिक पैसा कमाने की दृष्टि से उसका ठीक इलाज़ न कर के बीमारी को अधिक लम्बा बनाने का प्रयत्न करते हैं, जिससे कि रोगी से दवा एवं फीस के वहाने अधिक पैसा ऐंठा जा सके। कुछ ': डॉक्टर औषध विक्रेताओं से कमीशन तय कर लेते हैं कि मेरे रोगी के द्वारा खरीदी गई दवा का इतना कमीशन होगा, इस तरह सेवा के काम को धन कमाने का धन्धा बनाने वाले स्वार्थी एवं लालची वकील
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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