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________________ प्रश्नों के उत्तर .1 २-चोरी करके लाए गए माल को खरीदना भी दोप है । कुछ व्यक्ति समझते हैं कि हम तो व्यापार करते हैं, इसमें दोप को क्या वात है ? परन्तु जैनधर्म की दृष्टि से अन्याय से लाए गए पदार्थों को लेना उस अन्याय को बढ़ावा देना है। यही कारण है कि कानून की दृष्टि से भी उक्त कार्य को अपराध माना गया है । इसमें इतना श्रवश्य है कि यदि खरीदने वाले को यह मालूम नहीं है कि यह माल चोरी का है, वह साधारण माल समझ कर बाज़ार भाव से खरीदता है, उस के पूरे पैसे देता है तो वह अपराधी एवं दोषी नहीं है । परन्तु मालूम पड़ने पर भी लोभ में आकर कि माल सस्ता मिल रहा है, खरीदना अपराध है और श्रावक इस पाप कार्य से सदा-सर्वदा दूर रहता है । .. ३- तोल - माप के साधन कम या अधिक रखना । कुछ दुकानदार देने एवं लेने के वाद और गज़ आदि अलग-अलग रखते है । यदि "किसी ग्राहक को माल देना है तो कम तोल के बाद का उपयोग करते हैं और स्वयं को लेना है, तो उस समय अधिक वज्रन के बाट का उपयोग करते हैं। कुछ व्यक्ति अपने उक्त दोष को छिपाकर रखने के लिए साधनों के अनुसार अपने पुत्रों या अन्य वस्तुनों के नाम रख लेते हैं । जैसे किसी को कम तोलता है तो अपने संकेतानुसार घट्ट मल को बुला लिया जाता है । यदि कोई ग्राहक चालाक है तो पूर्णमल को याद कर लिया जाता है और किसी से अधिक लेना है तो वधारुमल को बुला लिया जाता है । इन संकेतों से ग्राहक वस्तुस्थिति को समझ नहीं पाता है और वह दुकानदार अपना स्वार्थ साध लेता है। इस तरह से किसी व्यक्ति को नाप तोल में कम देना या किसी से अधिक लेना भी दोष है। कानून की दृष्टि से भी मापक साधनों को कम-ज्यादा रखना अपराध माना गया है। 57. P ४८०
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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