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________________ प्रश्नों के उत्तर वन का सत्त्व समाप्त हो चुका है, जिसके ब्रह्मचर्य की शक्ति वह चुकी है, जिसके जीवन का पानी बह गया है। प्रस्तु, जीवन का सच्चा शृगार सदाचार है । सदाचारी व्यक्ति का सर्वत्र आदर होता है। वह बिना रोक-टोक के सर्वत्र आ-जा सकता है । इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को-चाहे स्त्री हो या पुरुष-- अपना तन-मन सदाचार से ... सजाना चाहिए । अपनी वासना को केन्द्रित रखना चाहिए । अपनी.. कामेच्छा को मर्यादा के बाहर नहीं बढ़ने देना चाहिए। . . . . उपसंहार .. .. . '. प्रस्तुत सातों व्यसन इस लोक और परलोक में दुःखप्रद होने से .. अनाचरणीय कहे गए हैं । साधना के पथ पर गतिशील साधक को इन दुर्व्यसनों से सदा बच कर रहना चाहिए । इनसे बच कर रहने वाला व्यक्ति ही साधना के पथ पर आगे बढ़ सकता है, अहिंसा, सत्य आदि व्रतों को देशतः या सर्वतः स्वीकार कर सकता है। अस्तु,सप्त व्यसन : का परित्याग जीवन विकास की पहली सीढ़ी है, साधना की प्रथम भूमिका है, त्याग-तप रूपी महल की नींव है । नींव जितनी गहरी एवं मजबूत होगी; भवन भी उतना ही सुन्दर, सुखद एवं मजबूत बनेगा। ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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