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________________ प्रश्नो के उत्तर द्वैत विचारवारा भी प्रवाहमान थी । इस के प्रमाण पाली त्रिपिटक, जैन ग्रागम एव सांख्य दर्शन आदि ग्रन्थो मे भरे पड़े है । बोद्ध, जैन और साख्य के विचार में विश्व के मूल में केवल एक ही जड या चेतन मौलिक तत्त्व नही, बल्कि जड़ और चेतन ऐसे दो मौलिक तत्व हैं, जिसके आधार पर यह विश्व खडा है । जैनो ने उसे जीव और जीव के रूप मे स्वीकार किया, साख्य ने पुरुष और प्रकृति के रूप में माना और बौद्धों ने उसे नाम और रूप कहकर पुकारा । सांख्य जैनो की तरह व्यक्ति भेद से अनेक जीव चेतन मानता है । परन्तु यह प्रकृति- जड़ को एक मूल तत्त्व मानता है । जैन चेतन की तरह जड़ को भी एक नहीं, अनेक तत्त्व स्वीकार करते हैं। न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन भो जड प्रौर चेतन दो तत्त्व मानते हैं श्रीर जड को सांख्य की तरह एक मौलिक तत्त्व न मान कर जेनों को तरह अनेक तत्त्व स्वीकार करते है । ये सभी बहुवादी आत्मा को मानते हैं, परन्तु कुछ ऐसे बहुवादियों का वर्णन भी मिलता है, जो आत्मा को स्वतन्त्र एव मौलिक तत्त्व नही स्वीकार करते । दार्शनिक टीका ग्रन्थो एव आगमो मे चार्वाक, नास्तिक, वार्हस्पत्य और लोकायत आदि मतो का खण्डन करते हुए लिखा है कि इन लोगो की मान्यता है कि इस लोक मे पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश ये पाच महाभूत है और इन से एक ग्रात्मा उत्पन्न होता है और उनके नाश के साथ आत्मा का भो नाश हो जाता है, आत्मा नाम का कोई मौलिक एव स्वतन्त्र तत्त्व नही है 8 । ६६. - इससे स्पष्ट परिलक्षित होता है कि आत्म स्वरूप की मान्यता win § सूत्रकृताग १, १, १, ७-८ 1 "
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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