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________________ प्रश्नो के उत्तर .... ५६. अपना प्रवृत्ति क्षेत्र बनाता है, तव ऐसा समझना चाहिए कि उसका प्रयोजन वर्तमान से होता है । क्योकि वस्तु की पर्याय प्रति क्षण बदलती रहती है। अत. जिस क्षण मनुष्य कार्य मे प्रवृत्त है, उस क्षण की पर्यायों मे और अगले क्षण की पर्यायो मे अतर हो जाता है । वर्तमान की अवस्था वर्तमान तक ही सीमित है। इसीलिए वर्तमान की स्थिति एक समय की कही गई है और पर्याय भी अपने स्वरूप मे एक समय तक स्थित रहती है, दूसरे समय मे उसमे परिवर्तन हो जाता है । अस्तु काल की अपेक्षा से अवस्थाएँ भिन्न है, यदि उन पर्यायो मे भिन्नता नही हो, तो सभी काल की अवस्थाए एक हो जायगी। इसी तरह वस्तु को भिन्नता से भी अवस्था मे भेद होता है। एक वस्तु की अवस्था दूसरी वस्तु की अवस्था से भिन्न होती है। जैसे हस श्वेत-सफेद है इस वाक्य मे हस मे और श्वेतपन में जो विभिन्नता नही दीख रही है उसे बताने के लिए ऋजू सूत्र नय कहता है कि हस अलग है और उसका श्वेतपन या उज्ज्वलपन अलग है । यदि ऐसा न माना जाए तो हंस और बुगला एक हो जाएगे।क्योकि दोनो श्वेत हैं,अत. श्वेत वर्ण के जितने भी पशु-पक्षी होगे वे एक हो जाएगे । इस तरह ऋजू सूत्र नय क्षणिकवाद को स्वीकार करता है। उसकी दृष्टि मे प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है। क्योकि प्रत्येक वस्तु की पर्याये प्रतिक्षण बदलती रहती है। काल और वस्तुभेद की तरह यह नय देश-क्षेत्र भेद से भी वस्तु मे भेद मानती है। शब्द नय उपरोक्त चारो नय अर्थ को अपना विषय बनाते हैं, अत. अर्थ नय है। प्रस्तुत शब्द नय और इसके बाद के दो नय भी शब्द को अपना विषय बनाते हैं, अतः तीनो शब्द नय है। शब्द नय-काल, कारक, लिंग, संख्या आदि के भेद से अर्थ का
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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