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________________ ५५ प्रथम अध्याय द्रव्य है या गुण? द्रव्य है तो जीव द्रव्य है या अजीव द्रव्य ? जीव द्रव्य में भी नरक है, देव है, मनुष्य है, तिर्यञ्च है या मुक्त-सिद्ध जीव है । नरक मे प्रथम नरक का नारक है या दूसरी, तीसरी यावत् सातवी नरक का ? 'इस तरह वह अभेद पूर्वक स्वीकृत पदार्थों को भेद पूर्वक विवक्षा करता है । क्योकि लोक व्यवहार भेद पूर्वक ही चल सकता है, अभेद पूर्वक नहीं । और इस नय का मुख्य उद्देश्य व्यवहार सिद्धि है $ | इस लिए यह भेद को अपना विषय बनाता है । उक्त तोनो नये द्रव्य को अपना विषय बनाते हैं, अत द्रव्यार्थिक नय है और आगे कहे जाने वाले चारों नय पर्याय को अपना विषय बनाते हैं, इसलिए पर्यायार्थिक नय हैं । ऋज़ सूत्र नय भेद - पर्याय को दृष्टि से जो पदार्थ का विश्लेषण करता है, वह ऋजुसूत्र नय है* । यह नय भूत और भविष्य का ग्रहण न करके मात्र वर्तमान का ग्रहण करता है । क्योंकि पर्याय वर्तमान मे हो अवस्थित रहती है । भूत और भविष्य मे द्रव्य स्थित रहता है, परन्तु पर्याय स्थित नहीं रहती । मनुष्य कई वार वर्तमान को हो स्वीकार करता है, भूत और भविष्य को देखता तक नहीं । इसका यह अर्थ नहीं है कि भूत और भविष्य सर्वथा असत्य है । वह भूत और भविष्य को सत्ता तो मानता है, परन्तु जब वह वर्तमान का हो ww $. व्यवहारानुकूल्यांत् प्रमाणानां प्रमाणता, नान्यया बाध्यमानाना ज्ञानाना तत्प्रसंगतः ॥ * भेदं प्रावान्यतोऽन्विच्छन् ऋजुमूत्रनयो मत' ।' लघीपस्त्रय ३, ६, ७०-७१
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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