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________________ प्रश्नों के उत्तर और नयवाद वस्तु के एक अश का अवलोकन करता है । नयवाट वस्तु के किसी एक अश को लेकर उसका प्रतिपादन करता है। उसके दूसरे अश से उसका कोई मतलब नहीं रहता। वह दूसरे पहलू का न विधान करता है और न निषेध ही। यदि वह वस्तु के दूसरे अगो का-जो उसकी परिधि से बाहर है, वर्णन करने लगे तो फिर वह नय नहीं रह कर प्रमाण या स्याद्वाद वन जायगा । और यदि वह वस्तु के दूसरे अग का निषेध करने लगे तो वह नयाभास हो जायगा, क्योकि वस्तु मे दूसरे प्रश (धर्म) का अस्तित्व है, फिर भी उस अस्तित्व का निषेध करना मिथ्या वकवास करना है । इस मिथ्या दूषण से वह नय भी सम्यक् नय न रहकर मिथ्या नय या असम्यक् नय वन जायगा । अस्तु नयवाद वस्तु के एक धर्म का ही विवेचन करता है, वह वस्तु के दूसरे धर्मों का न प्रतिपादन करता है और न निषेध करता है । इस का अर्थ यह नहीं है कि नयवाद वस्तु के एक धर्म को ही जानता है, अन्य को नही जानता। वह भी वस्तु को अनेक धर्म युक्त जानता-मानता है। वस्तु को अनेक धर्म युक्त जानकर ही वह उस के एक अश-धर्म की विवक्षा करता है। क्योकि उसके विवेचन की मर्यादा एक अश तक ही सीमित है, फिर भी वह दूसरे अशो-धर्मो का तिरस्कार नही करती हैं, इसलिए नयवाद भी सम्यक् है और वस्तु को जानने का-चाहे अश रूप से ही, यथार्थज्ञान है। द्रव्य और पर्याय अथवा सामान्य और विशेष ___ वस्तु अनेक धर्म युक्त है । अत. उसका विवेचन अनेक दृष्टियो से किया जा सकता है। वे अनेक दृप्टिएँ दो भागो मे विभक्त की जा सकती है.-सामान्य दृष्टि और विशेष दृष्टि -या द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक । इन दो दृष्टियो मे सारी दृष्टियो का समावेश हो जाता है। -
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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