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________________ प्रश्नों के उत्तर - ~ ~ ~~~ Mum m ar लिखा है-- "वास्तविकता का सच्चा और मचोट प्रतिपादन तो मात्र आपेक्षिक और तुलनात्मक ही हो सकता है और उस प्रतिपादन की शक्यता वह स्वीकार करता है। प्रत्येक सिद्धांत सत्य होता है,परन्तु कुछ निश्चित संयोगो मे ही अर्यात् परिकल्पना मे ही । वस्तु अनेक वर्मी होने के कारण कोई भी वात निश्चय न मे नही कही जा सकती है। वस्तु के विविध धर्मों को अभिव्यक्त करने के लिए विधि - निषेध सवधी शब्द प्रयोग सात प्रकार से होता है । यही स्याहाद सिद्धांत है। इस तरह भारतीय एव पाश्चात्य दार्शनिको का भी अभिमत है कि स्याहाद सगयवाद नहीं, प्रत्युत वस्तु के यथार्थ स्वरूप को जानने का एक प्रगस्त मार्ग है। ७- कुछ विद्वान यह तर्क देते हैं कि स्याद्वाद एकान्तवाद के आधार पर ही स्थित रह सकता है । स्याद्वाद को मान्यता है कि प्रत्येक वस्तु सापेक्ष है। उन सापेक्ष धर्मों के मूल मे जब तक कोई एक ऐसा तत्त्व न हो कि जो सर्व सापेक्ष धर्मों को एक सूत्र में बांध सके, तब तक वे धर्म स्थित नहीं रह सकते । अत उन सव को एक सूत्र में प्रावद्ध रखने वाला धर्म होना चाहिए, जो स्वय निरपेक्ष हो। और ऐसे निरपेक्ष तत्त्व की सत्ता स्वीकार करने पर स्याद्वाद का महल वरागावी हो जायगा। स्यावाद को एकान्तवाद कहना उसके अर्थ को नहीं समझना है। स्याहाद एक सापेक्ष दृष्टि है । वह वस्तु के वास्तविक स्वरूप को देखती है। स्याहाद वस्तु के सामान्य स्वरूप को भी स्वीकार करता है और विशेष स्वरूप को भी। वह यह नहीं कहता कि वस्तु मे एक रूपता है ही नही । वह वस्तु की एक रूपता को भी स्वीकार करता है । परन्तु mns History of Indian Philosophy. Dr Radha Krishnan Part I. Page 302.
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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