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________________ प्रश्नो के उत्तर २४ mameramanamarana... wwww सद् है और उभय रूप से प्रवक्तव्य है। इसी तरह वह सत् प्रवक्तव्य, असत् अवक्तव्य और उभय रूप अवक्तव्य है । ऐसे वस्तु का सात भगो से विवेचन किया जा सकता है। कुछ विचारकों का कहना है कि एक ही पदार्थ में दो विरोधी धर्म नहीं पाए जा सकते। परन्तु उनका यह कयन सत्य से परे है । उन का विरोध केवल विरोध के लिए है, क्योकि वस्तु मे स्थित दो या दो । से अधिक विरोधी धर्म स्पष्टतः प्रतीत होते हैं। कई एकान्तवादी विचारको के ग्रन्यो मे इसका उल्लेख मिलता है । सत् असत् और अनुभय अर्थात् न सत् और न अंसत् इन तोन पक्षों का झलक हमें ऋग्वेद के नारदीय सूक्त मे मिलती है। दो विरोधी पक्षों का एक वस्तु मे होना तो उपनिषत्कार को भी मान्य है। उदाहरण के तौर पर हम यहा उपनिषदों से कुछ वाक्य उद्धृत करते हैं'तदेजति तन्नै नति*, अणोरणीयान् महतो महीयान् ।' 'सदसद्वरेण्यम् ।। इत्यादि वाक्यो मे एक हो वस्तु में दो विरोवो धर्मों का उल्लेख . मिलता है। श्वेताश्वतरोपनिषद् में हमें तीसरा अनुमय मंग भी मिलता है । उपनिषदो एवं बौद्ध ग्रंयो मे चतुभंगी का उल्लेख भी मिलता है। तथागत बुद्ध ने चारो पक्षो को अव्याकृत कहा है। बुद्ध से पूछा गया कि मरणान्तर तथागत है? ___ * -इशोपनिषद् ५. . . . . . . . * कठोपनिषद् १,२,२०. . . . .- 1 मुण्डकोपनिषद् २,२,१. . .. - -
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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