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________________ ---NV A N _ प्रन्ना के उत्तर.. २२... शब्द का प्रयोग ही नहीं कर सकते, तो कुछ विचारको ने कहा कि हम जगत के प्रत्येक पदार्थ का निर्वचन कर सकते हैं । हेतुवादियो का कहना है कि दुनिया के प्रत्येक तत्त्व को तर्क से जाना जा सकता है और अहेतुवादी तर्क के सर्वथा विरोधी हैं। उन का कहना है कि किसी भी तत्त्व का निर्णय करने मे तर्क समर्थ नहीं है। इस तरह एकान्तवाद पर आधारित मत सदा परस्पर टकराते रहते है । क्योकि जहाँ एक विचार का समर्थन और दूसरे की उपेक्षा या विरोध होता है, वही टक्कर होती है। पुरातन काल से चले आ रहे दार्शनिक सघर्ष एव कलह - कदाग्रह तथा वर्तमान में चल रहे सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय एव अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ो का मूलकारण एकान्तवाद ही है । अपने विचारो का एकान्त आग्रह और दूसरे के विचारो का तिरस्कार करने की दुर्भावना ही सघर्ष की जननी है। - यह हम ऊपर वता पाए है कि वस्तु अनेक वर्म युक्त है। उस में एकान्तता जैसी कोई बात नहीं है । अस्तु, अपेक्षा दृष्टि से देखते हैं तो सभी विचारक सत्य के एक अग का प्रत्यक्ष करते हुए दिखाई देते हैं। जैन दर्शन में इसे नयवाद कहते हैं, उस मे कोई नय वस्तु का सामान्य दृष्टि से अवलोकन करता है, तो कोई विशेष स्वरूप को ध्यान में रख कर वस्तु का विश्लेषण करता है और दोनो दृष्टिये सही हैं। क्योकि दोनो दृष्टिये वस्तु का अवलोकन अपनी-अपनी दृष्टि से करती हैं और साथ में दोनों एक - दूसरे विचारों का आदर भी करती हैं। सामान्य दृष्टि विप को सर्वथा तिरस्कार नहीं करती और विशेष दृष्टि सामान्य की एकान्तत उपेक्षा नहीं करती। यही कारण है कि एक दृष्टि का समर्थन करने पर भी वे सत्य के निकट है, वस्तु को जानने में समर्थ है और उनमे परस्पर टक्कर भी नहीं होती। और जब यह नय अपनी दृष्टि के समर्थन के साथ दूसरी दृष्टि का तिरस्कार करने लगता है,
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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