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प्रश्नो के उत्तर
विभज्यवाद का उतना विस्तार नहीं हुआ जितना भगवान् महावीर के विभज्यवाद या स्याद्वाद का हुआ है । बुद्ध ने विभज्यवाद का प्रयोग सीमित दायरे मे किया है, जबकि महावीर ने सभी प्रश्नों का उत्तर देते समय अनेकान्तवाद का प्रयोग किया है । तथागत बुद्ध और श्रमण भगवान् महावीर के विभज्यवाद सिद्धात मे यही अन्तर है कि एक सकुचित दायरे मे ही रहे तो दूसरे ने उस का उपयोग, विस्तृत क्षेत्र मे किया ।
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माणवक और बुद्ध की तरह भगवान् महावीर के साथ गौतम, जयन्ती, जमाली, खधक, गांगेय ग्रनगार आदि कई श्रमण एवं गृहस्यो के प्रश्नोत्तर हुए हैं । भगवती सूत्र इन प्रश्नोत्तरी से भरा पडा है । उन मे से हम कुछ उदाहरण यहा देंगे, जिम मे श्रमण भगवान् महावीर, र तथागत बुद्ध के वीच रहा हुआ अन्तर स्पष्ट हो जाए ।
जयन्ती ने भगवान् महावीर से पूछा कि भगवन् ! जीव का सोना अच्छा है या जागना ? बलवान होना अच्छा है या निर्वल ? भगवान् महावीर ने इसका उत्तर एकान्त हा या न, में न देकर, उभयात्मक रूप से दिया है। एक अपेक्षा से जीव का सोए रहना अच्छा है, तो दूसरी अपेक्षा मे जागते रहना श्रेयस्कर है इसी तरह एक दृष्टि दृष्टि से निर्बल होना ।
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से जीवो का सवल होना श्रेष्ठ है, तो दूसरी
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इस के कारण का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो जीव अवामिक हैं, अधर्मानुगामी है, अमिष्ठ है, अवर्माख्यायी हैं, अधर्म-प्रलोको हैं, ग्रवर्म-प्ररंज्जन हैं, अधर्म - समाचार हैं, अधर्म वृत्ति वाले हैं वे सुषुप्त रहे यह अच्छा हैं, क्योकि वे जवमक सोते रहेंगे तब तक छ काय के जीव त्रास एवं उत्पीडन से बचे रहेंगे और वे स्व, पर और उभय को धार्मिक प्रवृत्ति मे प्रवृत्त नही करेंगे। जो जीव धार्मिक आदि हैं उन का जागना श्रेयस्कर है। क्योकि वे जगत के जीवो का कल्याण करने
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