SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नो के उत्तर इस तरह हम देखते है कि.जब परमाणु- जो वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि से युक्त है वह भी आखो से दिखाई नही देता. तो आत्मा जो वर्ण आदि से रहित है वह आंखो से कैसे देखा जा सकता है। फिर भी हमें उसका अनुभव अवश्य होता है। जैसे परमाण दिखाई नही देता, फिर भी उसके कार्य को देख कर उसके अस्तित्व का अनुमान करते हैं। इसी तरह आत्मा के चेतना रूप कार्य को देख कर हम यह अनुभव करते हैं कि शरीर से अतिरिक्त प्रात्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व है। क्योंकि, जब आत्मा गरीर को त्याग कर चला जाता है जिसे लोक भाषा मे मृत्यु कहते हैं, उसके बाद भी शरीर का अस्तित्व बना रहता है, परन्तु उसमे चेतना का अभाव होने से वह किसी तरह की हरकत नही कर सकता। इससे स्पष्ट होता है कि आत्मा का शरीर से पृथक अस्तित्व है। यदि आत्मा और शरीर एक ही होते तो आत्मा के निकलते ही शरीर का नाश हो जाता या शरीर का नाश होने पर चेतना (आत्मा) का लोप होता है। यदि ऐसा होता तब तो यह माना जा सकता था कि आत्मा और शरीर एक ही है। परन्तु, ऐसा होता नही है। आत्मा के निकल जाने के बाद भी शरीर निष्क्रिय पड़ा रहता है। उसमे पांचो भौतिक तत्त्व विद्यमान रहते हैं, फिर भी चेतना के अभाव मे उसका कोई मूल्य नही रह जाता है। इससे आत्मा का अस्तित्व स्पष्टत. प्रतीत होता है । वह आखो से दिखाई नहीं देने पर भी हमारी अनुभूति से छिपा नहीं रहता है, हम उसे प्रतिक्षण अनुभव एव दिव्य ज्ञान की चक्षुत्रो से देख सकते हैं। प्रात्मा को तरह आगेम को भी हमने नहीं देखा। परन्तु, इतने मात्र से वह अप्रमाणिक नहीं हो जाते । जव हम वाप-दादो द्वारा कही एवं लिखी हुई बातो को उनकी लिखावट एव वाणो मानकर सच
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy