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________________ ३२२ v - ~ ~ ~ ~ ~ प्रश्नों के उत्तर rrrrrrrrrrrrrr सकती है। वे केवल हरिद्वार मे ही भेजी जाए, ऐसी मान्यता जैन-धर्म की नहीं है। जैन-धर्म इन लोकिक प्रवृत्तियों को धर्म का रूप प्रदान नहीं करता। उसकी दृष्टि मे ये सव सांसारिक कृत्य हैं। इसके अलावा वैदिक धर्म का विश्वास है कि देवता मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु जैनधर्म कहता है कि मोक्ष केवल मानव योनि से ही प्राप्त किया जा सकता है। यदि देवता को मोक्ष पाने की इच्छा हो तो उसे मनुष्य बनना पड़ेगा, और कर्मों के नाग के लिए तप करना चाहिए । तप द्वारा आत्मा को सर्वथा निष्कर्म बना कर देव मुक्त हो सकता, अन्यथा नहीं। वैदिक धर्म कहता है कि ईश्वर की भक्ति करने से, उसकी कृपा से सुख मिलता है, किन्तु जैनधर्म कहता है कि सुख दुःख अपने अच्छे और बुरे कर्मों के कारण मिलता है, और स्वय ही मिलता है, उसे ईश्वर नही देता। वैदिक धर्म मानता है कि मुक्त हुया जीव वैकुण्ठ मे अनादिकाल तक सुख भोगता है, तथा ब्रह्म मे लीन हो जाता है, किन्तु जन-धर्म कहता है कि मुक्त जीव लोक के अन भाग मे रहते हैं, अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन रूप अपने स्वरूप मे रमण करते हैं, उनकी अपनी स्वतत्र सत्ता रहती है, वे ब्रह्म नाम की किसी शक्ति मे जा कर लय नहीं हो जाते, समाप्त नहीं हो जाते। जैन-धर्म वैकुण्ठ नाम का ऐसा कोई स्थान नही मानता है, जिसमे भगवान का दरवार लगा हुआ हो, वहां जीवो के पुण्य-पाप का हिसाव होता हो, कोई ऐसा रोजनामचा पडा हो, जिसमे जीवो के दैनिक कार्यों का खुलासा हो। जीवो के भाग्य का निर्णय किया जाता हो । जैनधर्म कहता है कि ईश्वर का जीव की किसी भी प्रवृत्ति के साथ कोई सम्वत्व नही है।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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