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________________ wrrrrrrrrrrrrrrrrr प्रश्नो के उत्तर ३१० विचार कर उसने राजा से प्रार्थना की- अन्नदाता ! अपने अमुक महाराज को अफीम खाने का वड़ा शोक था। वे भोजन के विना रह सकते थे, पर अफीम के विना उनका काम नहीं चलता था। वे कम से कम एक तोला अफाम प्रतिदिन सेवन किया करते थे । इन्हे स्वर्ग में गए सौ वर्ष हो गए है । इतने वर्षों तक उनको अफोम नहीं मिल पाई। इसलिए आज कम से कम ढाई मन अफीम मालपूड़े खाने वालो को खिला दीजिए, ताकि मालपूड़ो के साथ-साथ उन महाराज को अफीम भी प्राप्त हो जाए। इस बात को सुनते ही पेटू दरवारी सोच मे पड़ गए। यदि मालपूड़े खाएगे ता अफीम भी खानी पडेगी। अफीम खाते ही पितृलोक की यात्रा करना पड़गी। यह सोंच कर उन्होने किसी तरह श्राद्ध का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। फिर कभा उन्होंने श्राद्ध का नाम नहीं लिया। इस कथानक से स्पष्ट हो जाता है कि श्राद्ध के मूल मे कुछ यथायंता नहीं है। स्वार्थपूति के लिए ही इस परम्परा को ब्राह्मणा ने जन्म दिया है। एक और उदाहरण स इसकी अयथार्थता को समझिए एक आदमी घर मेश्राम का वृक्ष लगा कर गगा स्नान करने गया। वहा वह गगा का जल उछाल कर वाहिर डालने लगा। किसा ने उसस ऐसा करने का कारण पूछा तो वह वोला- भाई मैं यहां अपने घर में ग्राम का पौधा लग कर पाया हू । यहा चले पाने के कारण बहुत दिनो से उसको पाना नही दिया । आज मौका पाकर मैं उसे पानी दे रहा हू। वह आदमो बोला- मूर्ख । यहा पानी उछालने से तेरे घर मे पहुच जायगा? विश्वास रख, ऐसा नही हो सकता। इस उदाहरण से भी स्पष्ट है कि दूसरी जगह डाला हुआ पानी यदि पौधे को लाभ नहीं पहुवा सकता तो इस लोक मे दूसरो को खि
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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