SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०९ ..... सप्तम अध्याय - जनदम तब परलोक मे उसके द्वारा खाया गया भोजन पितरो के पास कैसे जो सकता है ? जनदर्शन का विश्वास है कि जब मनुष्य मरता है, तो उसके अनन्तर बहुत शीघ्र ही वह कही न कही जन्म धारण कर लेता है, उसे नवीन शरीर प्राप्त हो जाता है, और उस शरीर मे रह कर वह अपने पूर्वकृत कर्मों के अनुसार सुख-दु ख का उपभोग करता है । पुत्र, पुत्री, बहिन, भाई आदि द्वारा किया गया कोई भी शुभ या अशुभ कार्य उस के सूख-दुख मे ज़रा भी फेरफार नही कर सकता। इसलिए श्राद्ध की कल्पना के पीछे कोई सत्य नहीं है. केवल ब्राह्मणो का अपना स्वार्थ निवास करता है । आप वे ढूंस-ठूस कर भोजन खा जाते हैं, स्वय तृप्त होते हुए प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं । तथापि कहा जाता है कि तृप्ति पितरो की होती है। यह सत्य है कि दान करना शुभ कार्य है, भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी पिलाना गृहस्थ का कर्तव्य बनता है। नवविध पुण्यो मे अन्न पुण्य को सर्वप्रथम स्थान प्राप्त है, किन्तु ब्राह्मणो को खिलाने से पितरो की तृप्ति होती है, इसमे कोई सत्यता या यथार्थता नही है। श्राद्ध की अयथार्थता को एक उदाहरण से समझ लीजिए। किसी जगह राजा के मुंह लगे दरवारियो के मन मे मालपूडे खाने का विचार उत्पन्न हुआ। उन्होने परस्पर मत्रणा करके राजा से कहामहाराज पूर्वजो का श्राद्ध होना चाहिए, और उसमे सव को मालपूड़ खिलाने चाहिए । राजा भोला था, वह बातो मे आ गया, उसने मालपूडे बनवाने की प्राज्ञा दे दी। राजा का एक ऐसा मन्त्री भी था, जो राजा का सदा हित चाहता था। उसने सोचा- इन्होने माल उडाने की यूक्ति वनाई है। पर राजा के साथ धोका करना ठीक नहीं है। यह
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy