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प्रश्नों के उत्तर
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है, इनका निर्माता ईश्वर नहीं है ।
वेदी को यदि ईश्वर की रचना माना जाए, तो वह रचना तीन प्रकार से हो सकती है- एक तो ऐसे कि ईश्वर ने स्वयं पहले उनको लिख लिया हो, और फिर उसकी नकल करके अन्य ऋषियों ने उसकी कॉपी कर लो हो । दूसरे इस तरह कि ईश्वर बोलता गया हो और किसी पढे-लिखे मनुष्य ने उसे लिस लिया हो, जैसे प्रज्ञाचक्षु विद्वान स्वयं बोलता जाता है और लिखने वाला उसे लिखता चला जाता है । ऐसे ही ईश्वर ने वेदो को बोल दिया हो और किसी दूसरे ने उन्हें लिख लिया हो । तथा तीसरा प्रकार यह भी है कि ईश्वर ने किसी के कान में वेदों को सुना दिया हो और उसने ग्रन्य लोगों के हित के लिए स्वय पुस्तक रूप मे लिखकर तैयार कर दिया हो। इन तीनो मार्गों के सिवाय और कोई अन्य मार्ग दिखाई नही देता, जिसके सहारे ईश्वर ने वेदों का निर्माण किया हो ।
उक्त तीनो प्रकारो मे से पहले मार्ग से वेदो का बनना सर्वथा असभव है, क्योंकि जिस ईश्वर को वैदिक दर्शन सर्वव्यापक और निराकार मानता है । लिखने के वास्ते उसके पास हाथ कहा है ? जब उसका कोई आकार ही नहीं है, शरीर ही नहीं है, तो उसमे हाथ, पाव आदि शारीरिक अवयवो की अवस्थिति कैसे सभव हो सकती है? और हाथों के विना लेखनादि कार्य कैसे हो सकता है ? वैदिक दर्शन स्वय भी वेद- निर्माण मे इस पद्धति को स्वीकार नही करता है । अत्र. वेद रचना मे पहला प्रकार किसी भी तरह सगत नही ठहरता है। दूसरा प्रकार भी वेदों की रचना मे प्रामाणिक प्रमाणित नही होता, क्योकि ईश्वर जब निराकार है, और निराकार होने से उसके मुख, जिंहा है ही नहीं, तब वह स्वय बोल कर वेदो को लिखा भी कैसे सकता है ? श्चतः दूसरा प्रकार भी वेदों के निर्माण मे सत्य नही ठहरता है । रही
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