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________________ प्रश्नो के उत्तर ... ............२९६ और यथावश्यक वस्तुए सर्वत्र सुलभ कर देना वैश्य वर्ण का कर्तव्य था । इस कर्तव्य का प्रामाणिकता के साथ पालन करते हुए अपने और अपने परिवार के निर्वाह के लिए वह उचित पारिश्रमिक लिया करता था, वैश्य वर्ण की स्थापना में यही मूल भावना थी। चौथा शूद्र वर्ण था। इसका कार्य वडा हो महत्त्वपूर्ण था'। यह समाज को सेवा किया करता था । उसको सेवा को बदौलत समाज स्वस्थ रहता था और प्रजा का जीवन सुख-सुविधा के साथ व्यतीत होता था। शूद्र वर्ण की स्थापना मे किसी प्रकार की हीनता की भावना नही थी। जैनधर्म के विश्वासानुसार उक्त धन्धो के कारण मानवजाति के चार विभाग किए गए थे। या यू कहे कि मनुष्य जाति की सुख-सुविधा के लिए धन्धो को चार भागो मे बाट दिया था। और योग्यता को प्राधार बना कर उन के कर्ता व्यक्तियो के चार भाग कर दिए थे। अलग-अलग धन्धे करते हुए भो सब मे प्रेम था, कोई भेद-भाव नही था। मगर समय ने करवट ली। जव द्वेप और अहकार को भावनाए तीत हुई तो धन्धो के आधार पर बने हुए विभिन्न वगों मे ऊचनीच की भावना अकुरित होने लगी। उसके जहरीले फल सर्वत्र फैले और उन्होने मानव जाति की महत्ता और पवित्रता को नष्ट कर दिया। मनुष्य समझने लगा कि अमुक धन्धा करने वाला व्यक्ति उच्च है,और अमुक धन्धा करने वाला व्यक्ति नीच है । धीरे-धीरे धन्धो की वात भी उड़ गई और जन्म से ही उच्चता तथा नीचता, पवित्रता तथा अपवित्रता समझी जाने लगी। परिणाम यह हुआ कि जन्मना जाति वाद को लेकर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद करने वाली फौलादी दीवारे खडी हो गईं और अखण्ड मानव जाति खण्ड-खण्ड कर दी गई। जन्मना जातिवाद की परम्परा का प्रतिनिधित्व करने वाला
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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