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________________ ~ ~ ~ २८७ सप्तम अध्याय रखता है, इसके यहा गुणो के कारण किसी की स्तुति नही की जाती। इस में जिस समय अग्नि की पूजा को जाती है, तो उस समय अग्नि सर्वशक्तिमान है, और जिस समय विष्णु की पूजा की जाती है उस समय विष्णु सर्वश्रेष्ठ बन जाता है। महाभारत काल मे जव प्राकृतिक देवतापो का स्थान ब्रह्मा, विष्णु, गिव आदि पौराणिक देव ले लेते हैं, ता सभी देवता शिव की स्तुति करते हैं तो कभी शिव, ब्रह्मा या सरस्वती के चरणो मे लोटते है। वैदिक धर्म के अनुसार व्यक्ति अपने मे पूज्य है । ब्राह्मण इसीलिए पूज्य है क्योकि वह ब्राह्मण है, यदि वह सदाचार से रहित है, तब भी वह पूज्य है। इसी व्यक्ति पूजा के कारण भगवल्लीला पर समालोचना करने का किसी को अधिकार नही है। भगवान भक्तो के साथ चालाकी करते रहे, छल करते रहे, कपट करते रहे तो भी कोई चिन्ता की बात नहीं है। व्यक्ति पूजा मे ये सब दूषण उपेक्षणीय हैं। निनोक्त पौराणिक कथानक भी व्यक्त्ति पूजा को प्रकट कर रहे हैं। राजा बलि सी यज्ञो के द्वारा, इन्द्रासन प्राप्त करना चाहता है, किन्तु इन्द्रपद की रक्षा के लिए इन्द्र की प्रार्थना पर भगवान उसके तपोमय अनुष्ठान में विन्न उपस्थित करते हैं और उसे भग कर देते हैं । कुम्भकर्ण तपस्या द्वारा इन्द्रासन प्राप्त करना चाहता है। भगवान को प्रकट हो कर “वर वृणीप्व" यह कहना पड़ता है, किन्तु ऐसी माया रची जाती है कि उसके मुंह से इन्द्रासन के स्थान पर निद्रासन निकल जाता है । भगवान रास रचाते हैं, गोपियो मे विहार करते है, स्नान कर रही गोपियो के वस्त्र चुरा लेते हैं । एक ओर न्याय की दुहाई दे कर अर्जुन से युद्ध कराते हैं, दूसरी ओर अपनी समस्त सैन्य शक्ति दुर्योधन को सभाल देते हैं । एक ओर पाण्डवो की विजय न्याय की विजय कही जाती है, दूसरी ओर कौरवों का नाश होने पर कौरव
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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