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________________ प्रश्नो के उत्तर २८६ वृत्तियो को शान्त रखना । मन-मन्दिर मे क्रोध, मान, माया आदि विकारो को उत्पन्न न होने देना, यदि उत्पन्न हो गए तो क्षमा, मृदुता तथा सरलता यादि द्वारा उनको शान्त कर देना शमन का लक्ष्य होता है | श्रमण, समन और शमन समण संस्कृति का निचोड है । समण प्राकृत भाषा का शब्द है, यही संस्कृत मे श्रमण, समन और शमन के रूप मे परिवर्तित हो जाता है । श्रमण संस्कृति समण संस्कृति का एकागी रूपान्तर है । आज प्राय श्रमण संस्कृति शब्द ही अधिक प्रसिद्ध हो रहा है । MAAN www. ब्राह्मण संस्कृति का मूल ब्रह्म है । ब्रह्म शब्द यज्ञ, पूजा स्तुति तथा ईश्वर इन अर्थो का परिचायक है । ब्राह्मण संस्कृति इन्ही चार तत्त्वो के चारो ओर घूमती है। यज्ञ करना, देवताओ की पूजा करना, इन्द्र आदि की स्तुति करना तथा ईश्वर को जगत का निर्माता, भाग्य का विधाता, कर्म फल प्रदाता तथा ससार का सर्वेसर्वा मान कर उपासना, सध्या, वन्दन द्वारा उसकी प्रसन्नता को प्राप्त करना ही ब्राह्मण संस्कृति का मूल उद्देश्य है और यही उस की साधना का सर्वतोमुखी ध्येय है । t श्रमण संस्कृति मे जैन धर्म और बौद्धधर्म प्राता है, तथा ब्राह्मण संस्कृति से वैदिक धर्म का बोध होता है । वैदिक धर्म से, सनातन धर्म और आर्यसमाज इन दोनो का ग्रहण किया जाता है। प्रस्तुत मे हमें जैनवर्म और वैदिक धर्म के सिद्धात और ग्राचार के सवध मे विचार करना है । ग्रत इसी के सम्बध मे कुछ कहा जायगा । यदि गभीरता से विचार किया जाए तो जैन धर्म और वैदिक धर्म की मान्यताओ मे बहुत अन्तर रहता है, किन्तु यहा तो सक्षेप मे ही उन पर प्रकाश डाला जायगा । ब्राह्मण संस्कृति का प्राण वैदिक धर्म व्यक्ति - पूजा मे विश्वास
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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