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________________ प्रश्नो के उत्तर WA २६८ से व्यवस्थित ढंग से अभियोग चलाया जाता है । यह प्रमाणित होने पर कि इस व्यक्ति ने चोरी की है, या श्रमुक अपराध किया है तो न्यायाधीश (जज) उसको जेल या जुरमाना यादि का उपयुक्त दण्ड देता है । वह अपराधी व्यक्ति तथा लोग यह जान जाते हैं कि चोरी यदि दुष्कर्मो का फल जेल प्रादि के रूप में दण्ड मिलता है । इस दण्ड का ज्ञान होने पर वह व्यक्ति एवं साधारण जनता यह जान जाती है कि चोरी आदि दुष्कर्म नही करने चाहिए । यदि किए गए तो जेल आदि के रूप मे उसका दण्ड भुगतना पडेगा । फलस्वरूप भविष्य मे किसी व्यक्ति का चोरी आदि लोकविरुद्ध तथा राज्यविरुद्ध कार्य करने मे सहसा साहस नही होने पाता । 'जनता का भावी सुधार हो, यह उद्देश्य दण्ड देने मे रहा हुआ है । परन्तु यदि किसी देश का शासक किसी अपराधी को पकड़ या पकड़वा कर जेल मे डाल दे और उसपर कोई अभियोग (मुकद्दमा ) न चलावे और न यही प्रकट करे कि इस व्यक्ति ने क्या अपराध किया है । तो ऐसी दशा मे जनता उस व्यक्ति को निर्दोष और शासक को अन्यायी समझने लगेगी। अपराध तथा उसके फलस्वरूप दण्ड का बोध न होने से जनता कभी भी उस व्यवस्था से शिक्षित नही हो सकेगी । इस का कुफल यह होगा कि न कोई अपराध करने से डरेगा और न उस व्यक्ति का सुधार होगा । नाथूराम गोडसे ने सैकडो व्यक्तियो के सामने महात्मा गाधी के सीने मे तीन गोलिया मारी थी । अतः नाथूराम को हत्यारा प्रमाणित करने के लिए किसी गवाह की आवश्यकता नही थी, और व्यावहारिक रूप से भारत सरकार को गोडसे को फासी के तख्ते पर लटका देना चाहिए था । परन्तु भारत सरकार ने ऐसा नही किया, प्रत्युत व्यवस्थित रूप से अदालत मे गोडसे को हत्यारा प्रमाणित करने के अनन्तर ही उसे फासी दी गई। राज्य व्यवस्था इसी ढंग से जीवित रह सकता JAA
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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