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________________ २५५ षष्ठम अध्याय से चले श्रा रहे हैं। जड़ अर्थात् पुद्गल का शुद्ध रूप परमाणु है और परमाणु का न कभी निर्माण हुआ है और न कभी नाश ही होता है । वह अनादि काल से अपने रूप मे स्थित है और अनन्त अनन्त काल तक बना रहेगा । उसकी न श्रादि है और न अन्त ही है। इतना होने पर भी उसकी पर्यायो मे परिवर्तन होता है । जैसे तख्त को लीजिए । ग्रनन्त-अनन्त परमाणुओ के संयोग से यह स्कन्ध बना है । प्रति समय इसमे परिवर्तन होता रहता है । कुछ पुराने परमाणु इस मे से अलग होते हैं और नए परमाणु मिलते रहते हैं । इसी तरह परमाणुओ के सघटन एव विघटन से या संघटन - विघटन उभय रूप कार्य से स्कन्धों मे परिवर्तन प्राता रहता है । हम देखते हैं कि प्रॉक्सीजन और हाईड्रोजन दोनो गैसो मे स्थित परमाणु अपने रूप मे स्थित हैं | परन्तु दोनो गैसो का मिश्रण करते ही, उभय गैस रूप स्कन्ध का नाश हो कर जल रूप अभिनव स्कन्ध का निर्माण हो जाता है । तो यह परमाणुओ के सघटन-विघटन का परिणाम है, न कि किसी ईश्वर का काम है । वहां कोई ईश्वर गैसो को पानी के रूप मे बदलने के लिए नही आता । इस तरह हवा, श्रांघी एव नदी यादि के प्रवाह से पहाडो की चट्टानो के पत्थर टूट-टूट कर पानी के साथ वह जाते हैं, इस से दुर्गम पहाडो मे भी दरें बन जाते हैं और लोगो को आवागमन का मार्ग मिल जाता है । इस तरह स्कन्धो के संघटन - विघटन की प्रक्रिया से हम यह देखते हैं कि एक दिन जहां रेतो के टिब्बे थे, वहा मैदान एव नदी तथा समुद्र नज़र आता है और जहा कभी सागर लहर-लहर कर लहरा रहा था, वहा रेत के पहाड़ खडे हैं । इसी तरह कही पहाडो के स्थान में समतल मैदान बन गए हैं और कही समतल मैदान पर्वतमाला के रूप में बदल गए हैं। भले ही इस प्रक्रिया को लाखो, करोड़ो, अरवों वर्ष ही नही,
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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