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________________ प्रश्नों के उत्तर यह कहना कि उस ने सृष्टि के होने की कामना की और वह कामना तुरन्त साकार रूप में परिणत हो गई । इस तरह वैदिक परंपरा द्वारा मान्य सिद्धात से भी यह मान्यता गलत ठहरती है और अनुभव एव सत्य की दृष्टि से तो यह मान्यता गलत है ही । सर्वप्रथम तो यह कहना ही नितान्त सत्य है कि ईश्वर ने अपने मन या दिल बहलाने के लिए संसार को बनाया है । क्योकि यह हम पहले देख चुके है कि ईश्वर के कर्म या कर्म जन्य उपाधि - शरीर, मन एव वासना ग्रादि नही होते । ऐसी स्थिति मे मन लगाने का सवाल हो पैदा नही होता । यदि एक क्षण के लिए इस तर्क को मान भी ले, तो यह कहना होगा कि ईश्वर राग-द्वेष आदि दोपो से सर्वथा रहित नहीं, प्रत्युत रागरग में आसक्त प्राणी है। तभी तो उसने विषय-वासना की कालिमा से धूमिल एवं कपायो की आग से सतप्त विश्व का निर्माण करके अपनी आकांक्षा को पूरा किया। इस से स्पष्ट प्रतीत होता है कि ईश्वर एक ऐसा तमागवीन है कि जो अपने मन को बहलाने के लिए दो सांडों को परस्पर लड़ाता है और एक दूसरे को खून से लथपथ हुआ देख कर प्रसन्न होता है । क्या ऐसे व्यक्ति को ईश्वर कहा जा सकता हैं ? कदापि नही । प्रश्न - संसार में जितने भी पदार्थ दिखाई देते हैं, वे किसी न किसी व्यक्ति द्वारा निर्मित होते हैं । इस प्रकार यह ससार भी किसी की रचना है और यह रचना करने वाला कौन हैं ? उत्तर- यह हम पहले बता चुके है कि ससार मे मूल द्रव्य दो हैं- १जीव और २ - अजीव । प्रत दुनिया मे परिलक्षित होने वाले सभी जड़ या चेतन पदार्थ इन दो द्रव्यो पर ही आधारित है और वे अनादि काल २५४ AAAAJ ++
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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