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________________ ईश्वर - सीमांसा षष्ठम अध्याय प्रश्न- ईश्वर के संबध में दार्शनिकों की क्या मान्यता है और जैन दर्शन इसके संबंध में क्या मान्यतो रखता है ? उत्तर- भारतीय चिन्तनधारा दो प्रवाहो मे वही है-- कुछ विचारक ईश्वर के अस्तित्व को नही मानते और कुछ मानते हैं। पहली विचार धारा चार्वाक आदि नास्तिक विचारको की है, जो ग्रात्मा के स्वतंत्र अस्तित्व एव परलोक आदि की सत्ता से इन्कार करते है । दूसरी विचारधारा आस्तिक परम्परा की है । प्रास्तिक विचारक मुख्य रूप से तीन विभागो मे विभक्त हैं- १ वैदिक दर्शन, २ जैन दर्शन और ३ बौद्ध दर्शन । वैदिक परम्परा से अनेक शाखा प्रशाखाए है और उनमे थोडा बहुत विचारभेद भी है । परन्तु, ईश्वर के सवध मे प्राय सभी वैदिक दार्शनि को एव विचारकों का यह अभिमत रहा है कि ईश्वर एक है, सच्चि - दानद' है, घट-घट का-जाता है, सर्वशक्तिमान है, ससार का निर्माता है, जीवो को भले-बुरे कर्मो का फल प्रदाता है, सृष्टि का कर्ता एवं हर्ता - विनाशक है । दुष्ट एव पापियों का नाश करने तथा भक्तो एवं धर्माका उद्धार करने के लिए वह समय-समय पर अवतरित होता है - भगवान से, पुन. इन्सान के रूप मे जन्म लेता है यार अपनी "
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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