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________________ २२७ चतुर्थ अध्याय मालूम हुई तो वे सिंहलद्वीप गए और वहां उन्होंने अपने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को रानी पद्मावती के अन्तःपुर में पाया । उन्होंने अपनी योगविद्या से स्मरण दिलाकर उनका विवेक जागृत किया | मत्स्येन्द्रनाथ को ज्ञान हुआ और वे रानी पद्मावती को छोड़ कर फिर योगारूढ़ हो गए । फिर वे पद्मावती से उत्पन्न अपने दोनों पुत्रों पारसनाथ और नेमिनाथ (जो आगे चलकर जैन तीर्थंकर हुए) को साथ लेकर नेपाल चले गए । I प्रस्तुत संदर्भ में पारसनाथ और नेमिनाथ को जैन तीर्थंकर लिखा है और उहें मत्स्येन्द्रनाथ के पुत्र स्वीकार किए हैं। क्या यह सत्य है ? उत्तर यह वात नितात असत्य है और केवल साप्रदायिक इर्ष्या वा जैनो का तिरस्कार करने की दृष्टि से ही सिद्ध साहित्य मे इसका उल्लेख किया गया है । मत्स्येन्द्रनाथ और भ० नेमिनाथ तथा पार्श्वनाथ मे कालगत साम्य भी नही है । - मत्स्येन्द्रनाथ १३वी सदी मे हुए है । † लक्ष्मीनारायणकृत “श्री ज्ञानेश्वर चरित्र" के हिन्दी अनुवाद के आधार से गोरखनाथ ज्ञानेश्वर के प्रपितामह अम्वकपन्त के समकालीन हुए है । श्रम्वक पन्त ने १२७० के लगभग गोरखनाथ का शिष्यत्व स्वीकार किया था । अतः गोरखनाथ का समय विक्रम की १३वी शताब्दी सिद्ध होता है । इस के श्रुतिरिक्त डॉ रामकुमार वर्मा भी इन का समय १३वी शताब्दी का मध्य भाग ही मानते है । और मत्स्येन्द्रनाथ गोरख नाथ के समकालीन थ, अतः मत्स्येन्द्रनाथ का समय भी १३वी शताब्दी का मध्य भाग ही प्रमाणित होता है ।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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