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________________ प्रश्नों के उत्तर २०४ है । इस तरह आत्मा सवर से नए कर्मों के आगमन को रोकती है और उक्त तप से पूर्व सचित कर्मो की निर्जरा करती है, अत फलस्वरूप एक दिन वह कर्म वचनो से सर्वथा मुक्त हो जाती है । प्रत. उक्त प्रक्रिया को सकाम निर्जरा कहते है । " सम्यक् ज्ञान पूर्वक किया जाने वाला तप दो प्रकार का है- १ बाह्य और २ श्राभ्यतर वाह्य तप के ६ भेद है- १ अनशन, २ अनौदर्य, ३ भिक्षाचरी, ४ रस परित्याग, ५- कायक्लेश और ६ प्रतिमलीनता तप । 1 १ अनशन - एक दिन, दो दिन या उससे अधिक दिन या जीवन पर्यन्त के लिए श्राहार-पानी का त्याग कर देना । इसके अतिरिक्त गर्म पानी को पीकर भी अनशन किया जाता है, इस प्रकार के अनशन को तिविहार अनशन कहते हैं, इसमें ग्रशन रोटी, चावल, सब्जी आदि, खादिम - बादाम-पिश्ता आदि मेवा या फल, स्वादिम - इलायची, सुपारी, पान त्रादि पदार्थो का त्याग होता है । जिस अनशन मे पानी का भी त्याग कर देते हैं, उसे चउविहार अनशन कहते है । 7 a २ अनीदर्य - भूख से कम खाना । यदि, ३२ ग्रास की भूख है फिर भी वह ८ ग्रास खाकर सतोष करता है, तो वह भाग अनौदर्य तप करता है, इसी तरह १६ ग्रास, २४ ग्रास खाता है, तो वह क्रमश. 4 और 2 भाग अनौदर्य तप करता है और यदि वह एक ग्रास भी. कम खाता है, तब भी उसे अनौदर्य तप कहते हैं ।। MN 3 -३ भिक्षाचरी - कई घरो मे से निरवद्य और एषणिक भिक्षा ला , कर उसमे सन्तोष करना भिक्षाचरी तप कहलाता है ! ४ रस परित्याग- दूध, दही, घी, मक्खन, का त्याग करने का नाम रस परित्याग तप है । ★ मिष्ठान आदि रसो + î 3. '
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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