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________________ प्रश्नो के उत्तर .......... १८४ परिणाम और प्रकृति का संबंध यह एक सोचने-समझने की बात है कि जड प्रकृति पर कर्म वर्गणा के पुदृगलो का कोई असर नहीं होता है। उसमे होने वाला परिवर्तन जड़ परमाणुओं के सघटन-विघटन पर आधारित है, परन्तु कर्म से उसका कोई सबंध नहीं है। फिर भी ये परिवर्तन एक अपेक्षा से कर्म मे सबधित भी है। जड़ के कर्मों से नहीं, बल्कि चेतन के, जीव के कर्म से प्रभावित है। जैसे भूकम्प आदि आकस्मिक घटनाए घटित होती हैं, जिन्हें जनसाधारण की भाषा में देवी प्रकोप कहते है। वैज्ञानिक दृष्टि से ये घटनाए कुछ रासायनिक परिवर्तनो के कारण होती है और सैद्धान्तिक दृष्टि से पुदगल परमाणुमो के जुडने-टूटने के परिणाम स्वरूप प्रकृति में परिवर्तन पाता है। परन्तु वह घटना उस स्थान मे स्थित जीवों के दुख एव सवेदना का जो कारण बनती है, वह उन जीवों के सामूहिक वेदनीय कर्म के उदय का ही फल है। यह स्पष्ट है कि आत्मा के शुभाशुभ विचारो का प्रकृति पर भी असर होता है । श्रमण-सस्कृति इस बात को मानती है कि तीर्थकर जिस क्षेत्र में विराजमान होते है, उस क्षेत्र के आस-पास २५ योजन अर्थात् २०० मील तक कोई उपद्रव नही होता है, कोई संक्रामक रोग नहीं फैलता है, राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय संकट पैदा नहीं होता है, अनावृष्टि-अतिवृष्टि के कारण दुष्काल नहीं पड़ता है। यह उन महापुरुपो के उज्ज्वल, समुज्ज्वले, महोज्ज्वल विचार परमाणुमो का ही असर है कि वे प्रकृति के परमाणुगो को प्रकोपित नही होने देते। आत्मा के शुद्ध अव्यवसायों से अनुप्राणित वे शुद्ध-सात्विक एव शान्त परमाणु उस क्षेत्र के आस-पास स्थित समस्त परमाणुओ को शान्तप्रशान्त बना देते हैं । यही स्थिति-अशुभ विचार के बुरे परमाणुनी के
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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