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________________ ............ प्रश्नों के उत्तर , , , , . , .., १८२ उपरोक्त विचारो से यह स्पप्ट हो गया है कि कर्म बंध मे प्रवल कारण मन है अथवा यों कह सकते हैं कि परिणामो को तीव्रता और मन्दता के अनुसार ही कर्मों का तीव्र एवं मन्द बध होता है। अत कपाय और योग को कर्म वन्ध कहा गया है, वह उपयुक्त ही है। मिथ्यात्व आदि का उसी मे समावेश हो जाता है । क्योकि अनन्तानुवधी कपाय का उदय मिथ्यात्व है, अप्रत्याख्यानी कपाय का उदय व्रत है और प्रत्याव्यानी कपाय का उदय प्रमाद हैं। अतः कम वन्ध के उक्त दो, और मिथ्यात्व, अव्रत, कपाय और योग इन चार तथा उसमे प्रमाद को मिला कर किए गए ५ भेदो मे कोई सैद्धातिक विरोध-नहीं है। मात्र सख्या का भेद है । इससे मान्यता मे किसी भी तरह का अन्तर नही पड़ता है। - कर्म फल का स्थान काल, स्वभाव, ईश्वर आदि को एकांत आधार मानने वाले विचारक जगत मे दिखाई देने वाले वैचित्र्य का कारण उन सबको मानते हैं। जो दर्शन एकात अद्वैत को स्वीकार करते हैं या मात्र-चेतन से ही सृष्टि की उत्पत्ति मानते हैं, उनके मतं मे अदृष्ट-कर्म या माया ही वैचित्र्य का कारण है । नैयायिक-वैशेपिक द्वैत को मानते हैं, फिर भी सृष्टि वैचित्र्य का कारण अदृष्ट-कर्म को स्वीकार करते हैं। उनके मतानुसार जड और चेतन सभी कार्यो मे अदृष्ट साधारण कारण है। वौद्ध दर्शन जड सृष्टि मे कर्म को कारण नही मानता है। यहा तक की वे वेदना को भी सर्वथा कर्म का कारण नही मानते है । मिलिन्द प्रश्न मे इसके ८ कारण माने हैं-- १ वात, २ पित -३ कफ और ४ इन तीनो का सन्निपात, ५ ऋतु, ६ विषमहार,७ औपक्रमिक और ८ कर्म । उक्त आठ कारणो मे से किसी एक कारण से जीव को वेदना का
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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