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________________ प्रश्नों के उत्तर मे किसके ग्रस्तित्व को स्वीकार किया था । 2 वैदिक ऋपियो के मन मे इस बात का विचार तो उठा ही था कि इस सृष्टि का कोई कारण होना चाहिए। परन्तु इसका कारण क्या है ऋगवेद में इसका कोई उल्लेख नही मिलता है। श्वेताश्वतर में इसका उल्लेख मिलता है और वहां पर काल, स्वभाव, यदृच्छा, नियति, भूत और पुरुष इत्यादि वादो को गिनाया गया है। इस तरह विचारक सृष्टि मे उपरोक्त कारणो मे से किसी एक -एक कारण को सृष्टि का निमित कारण मानते रहे हैं । इनमे कालवादी सब से पुरातन प्रतीत होता है । उसकी मान्यता है काल ने ही पृथ्वी को उत्पन्न किया है । काल के कारण ही सूर्य तपता है और सारे भूत उसी के आधार पर स्थित है । काल के कारण ही वृक्ष फलते-फूलते है, धान पकता है, वर्षा होती है या एक शब्द मे कहे तो दुनिया के सारे कार्य काल का निमित पाकर ही पूरे होते हैं । त काल ईश्वर है, प्रजापति का भी पिता है। महाभारत मे तो सुखदुख, जीवन-मरण इन सवका आधार तथा विश्व वैचित्र्य का कारण काल को ही माना है । * काल के महत्त्व को नैयायिक दर्शन ने भी माना है । उसने ईश्वर यादि कारणो के साथ काल को भी सृष्टि का निमित कारण माना है । I इस तरह कुछ विचारको की यह मान्यता रही है कि सृष्टि के सभी कार्य काल की परिपक्वता पर आधारित है । A * * Purbe स्वभाव कुछ विचारको का कहना है, सृष्टि के सभी कार्य स्वभाव से होते महाभारत, शान्तिपर्व ३३, २३ । जन्याना जनक कालो जगतायाश्रयो मत 1 न्यायसिद्धात मुक्तावली ४५ ।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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