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________________ प्रश्नों के उत्तर ग्रादिवासियो ( Primitive people) से लिया हो । विद्वानो की इस मान्यता का खण्डन करते हुए प्रो० हिरियन्ना ने यह तर्क दिया है कि आदिवासियो की यह मान्यता कि ग्रात्मा मर कर वनस्पति मे जन्म लेता है, निरा वहम ( Superstition ) है । इस कारण उनके इस विचार को कि मनुष्य मर कर वनस्पति ही होता है, दार्शनिक नही कह सकते हैं । ग्रत. यह मानना उचित नहीं कहा जा सकता कि वेदिकोन कर्मवाद का सिद्धान्त आदिवासियो से लिया था । 2 १५६ AVAN अध्ययन करते हैं, तो कर्मवाद की मान्यता जब हम जैनो के कर्मवाद का गहराई से यह स्पष्ट हो जाता है कि वैदिक परम्परा मे जो ग्राई है, उस पर जैन परम्परा का असर पड़ा है । भले ही जैन परपरा का पहले श्रमण, निर्ग्रन्थ या अन्य कोई नाम रहा हो, परन्तु यह निञ्चित है कि वैदिक परम्परा के पूर्व उसका अस्तित्व अवश्य था । कर्मवाद का पूरा इतिहास, जो हमारे सामने है, वह इस बात का साक्षी है कि वैदिक परम्परा मे मान्य कर्मवाद पर जैनो के चिन्तन का स्पष्ट असर परिलक्षित होता है । 1 L वेद युग से लेकर उपनिषद् काल तक वैदिक ऋपियो की यह मान्यता रही है कि चेतन या जड़ किसी एक तत्त्व से सृष्टि का निर्माण हुआ है और वह अनादि नहीं, सादि है । परन्तु कर्मवाद के अनुसार सृष्टि सादि नही, अनादि है । जीव और जड़ दोनो अनादि काल से है और जीव (ग्रात्मा) के साथ कर्म का सवव भी अनादि काल से चला आ रहा है । उपनिषद् काल के बाद के वैदिक साहित्य मे भी सृष्टि ‡ Out lines of Indian - Philosophy (Hiriyanna) Page 790.
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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