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________________ प्रश्नो के उत्तर ૪ 1 परिणति नही मानता । उस का कहना है कि आत्मा सदा शुद्ध-बुद्ध एव उज्ज्वल है, उसमें किसी तरह का विकार पैदा नहीं होता । यहां तर्क कि मोक्ष भी श्रात्मा का नहीं प्रकृति का होता है । क्योकि सुख-दुख, ज्ञान आदि पुरुष ( श्रात्मा ) के धर्म नही, प्रकृति के धर्म है । इस तरह सात्य दर्शन ने आत्मा को कर्त्ता तो नही माना, पर उसे भोवता अवश्य माना है $ । परन्तु इस भोग को लेकर श्रात्मा में परिणामीत्व घटित हो जाने की सभावना होने से कुछ सास्य विचारको ने भोग की भी ग्रात्मा का धर्म स्वीकार करने से इन्कार कर दिया । । इस तरह उन्होने ग्रात्मा के कूटस्थ नित्यंवाद को पूर्ण सुरक्षित रखने का प्रयत्न किया । नैयायिक-वैशेषिकों का नित्यवाद नैयायिक - वैशेषिक द्रव्य और गुण को भिन्न मानते है । वे सुखदुख, ज्ञान आदि गुणो को आत्मा में मानते है और उन स्व गुणो को अनित्य मानते हैं । परन्तु उन ज्ञानदि गुणो की अनित्यता के कारण आत्मा की अनित्यता उन्हें स्वीकार नही है । उन की दृष्टि से ग्रात्मा नित्य ही है । जैन दर्शन ज्ञानादि गुणों को आत्मा से प्रभिन्न मानता है और उनकी अनित्यता की अपेक्षा से आत्मा को भी अनित्य मानता है। बौद्धों का नित्यवाद तथागत बुद्ध ने पुद्गल - जीव को एकान्त नित्य माना है । प्रत्येकं समय में विज्ञान आदि चित्क्षण नए-नए उत्पन्न होते है । और ये अभिनव विज्ञानक्षण उस पुद्गल से सर्वथा भिन्न नही है । इस तरह थे साख्यकारिका ६२ । साख्यकारिका १० $ सारयकारिका १७ । T साख्यतत्त्वकौमुदी १७ ।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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