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________________ ७०० भगवई १७३ तए णं से विमलवाहणे राया अण्णया कदायि समणेहि निग्गथेहि मिच्छं विप्पडिवज्जिहिति-अप्पेगतिए अाप्रोसेहिति, अप्पेगतिए अवसिहिति, अप्पेगतिए निच्छोडेहिति, अप्पेगतिए निव्भछेहिति', अप्पेगतिए वधेहिति, अप्पेगतिए निरु भेहिति', अप्पेगतियाणं छविच्छेद करेहिति, अप्पेगतिए पमारेहिति, अप्पगतिए उद्दवेहिति, अप्पेगतियाण वत्थ पडिग्गह कवलं पायपुछण प्राच्छिदिहिति विच्छिदिहिति भिदिहिति अवहरिहिति, अप्पेगतियाण भत्तपाण वोच्छिदिहिति, अप्पेगतिए निन्नगरे करेहिति, अप्पेगतिए निव्विसए करेहिति ।। १७४ तए ण सयदुवारे नगरे वहवे राईसर- तलवर-माडविय-कोडुविय-इन्भ-सेट्ठि सेणावइ-सत्थवाहप्पभितम्रो अण्णमण्ण सद्दावेहिंति, सहावेत्ता एव वदिहितिएवं खलु देवाणुप्पिया | विमलवाहणे राया समणेहिं निग्गथेहि मिच्छ विप्पडिवन्ने-अप्पेगतिए अायोसति जाव निव्विसए करेति, त नो खलु देवाणप्पिया। एय अम्ह सेय, नो खलु एय विमलवाहणस्स रण्णो सेय, नो खलु एय रज्जस्स वा रटुस्स वा वलस्स वा वाहणस्स वा परस्स वा अते उरस्स वा जणवयस्स वा सेय, जण्ण विमलवाहणे राया समणेहि निग्गथेहि मिच्छ विप्पडिवन्ने । त सेय खलु देवाणुप्पिया ! अम्ह विमलवाहण राय एयमट्ठ विण्णवेत्तए त्तिकटु अण्णमण्णस्स अतिय एयमट्ठ पडिसुणेहिति', पडिसुणेत्ता जेणेव विमलवाहणे राया तेणेव उवागच्छिहिति', उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहिय" 'दसनह सिरसावत्त मत्थए अजलि कट्ट० विमलवाहणं राय जएण विजएण वद्धावेहिति', वद्धावेत्ता एव वदिहिति'-एव खलु देवाणुप्पिया ! समणेहि निग्गथेहि मिच्छ विप्पडिवन्ना अप्पेगतिए पायोसति जाव अप्पेगतिए निव्विसए करेति, त नो खलु एय देवाणुप्पियाण सेय, नो खलु एय अम्ह सेय, नो खलु एय रज्जस्स वा जाव जणवयस्स वा सेय, जण्ण देवाणुप्पिया। समणेहि निग्गथेहि मिच्छं विप्पडिवन्ना, त विरमतु ण देवाणुप्पिया । एयस्स अट्ठस्स अकरणयाए । १७५ तए ण से विमलवाहणे राया तेहि वहूहिं राईसर-तलवर-माडबिय-कोडुविय १. निव्भत्येहिति (अ, क), निन्भच्छेहिति (ख, ता)। २ रु भेहिति (अ, ता, व, म)। ३. स० पा०-राईसर जाव वदिहिंति । ४. आउस्सइ (ब, स)। ५. पडिसुणेति (अ, क, ख, ता, व, म, स)। ६ उवागच्छति (अ, क, ख, ता, व, म, स)। ७. स० पा०—करयलपरिग्गहिय । ८. वद्धावेंति (अ, क, ख, ता, ब, म, स)। ६. वदति (अ, क, ख, ता), वदासी (ब, म, १०. स. पा.-राईसर जाव सत्थवाह° ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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