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________________ ६४६ सिणं भते । देवाण केवतिय काल ठिई पण्णत्ता ? गोयमा | दससागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता | प्रत्थि ण भते । तेसि देवाण इड्ढी इ वा जुई इ वा जसे इ वा वले इ वा ? वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इवा हा अत्थि । ते ण भते । देवा परलोगस्स प्राराहगा ? हता थि | भगवई अम्मड-च‍ इ-चरिया-पदं ११० बहुजणे ण भते । प्रणमण्णस्स एवमाइक्खइ एव भासइ एव पण्णवेइ एव परूवेइ–एव खलु अम्मडे परिव्वायए कपिल्लपुरे नगरे घरसए 'ग्राहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ | से कहमेय भते ? एव खलु गोयमा । ज ण से बहुजणे अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एव भासइ एव पण्णवेइ एव परूवेइ - एव खलु अम्मडे परिव्वायए कपिल्लपुरे नगरे घरसए श्राहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ, सच्चे ण एसमट्टे अहपि णं गोयमा ! एवमाइक्खामि एव भासामि एव पण्णवेमि एव परूवेमि - एव खलु अम्मडे परिव्वायए कपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वर्साह उवेइ ॥ १११. से केणट्टेण भते ! एव वुच्चइ - ग्रम्मडे परिव्वायए कपिल्लपुरे नगरे घरसए ग्राहारमाहरेइ, घरसए वसहि उवेइ ? गोयमा । श्रम्मडस्स ण परिव्वायगस्स पगइभद्दयाए पगइउवसतयाए पाइपतणुकोहमाणमायालोहयाए मिउमद्दवसपण्णयाए अल्लीणयाए विणीययाए छट्ठछट्टेण अणिक्खित्तेण तवोकम्मेण उड्ढं वाहाओ पगिज्झिय-पगिज्भिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेण परिणामेण पसत्थेहि अज्भवसाणेह लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं ग्रण्णया कयाइ तदावरणिज्जाण कम्माण खप्रोवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसण करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए मोहिनाणलद्धी समुप्पण्णा । तए ण से ग्रम्मडे परिव्वायए तीए वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए मोहिनाणल - द्वी समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेउ कपिल्लपुरे नगरे घरसए ग्राहारमाहरेइ, घरसए वर्साह उवेइ । से तेणट्टेण गोयमा । एव वच्चइ – अम्मडे परिव्वायए कपिल्लपुरे नगरे घरसए ग्राहारमाहरेइ, घरसए वर्साह उवेइ ॥ १ स० पा० - एव जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया जाव ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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