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________________ ५.३२ भगवई वाससहस्साइ ठिती पण्णत्ता, तेण पर समयाहिया जाव' तेण पर वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य । १८० से कहमेय भते ! एव ? जोति । समणे भगव महावीरे ते समणोवासए एव वयासी - जण्ण ग्रज्जो । इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तुम्भ एवमाइक्खड़ जाव परूवेइ – देवलोएमु ण देवाणं जहणेण दस वाससहस्साइ ठिती पण्णत्ता, तेण पर समयाहिया जाव तेण पर वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य - सच्चे ण एसमट्ठे, ग्रह 'पिण" अज्जो ! एवमाइक्खामि जाव' परूवेमि - देवलोएसु ण प्रज्जो । देवाण जहणेण दस वाससहस्साइ ''ठिती पण्णत्ता, तेण पर समयाहिया, दुसमयाहिया, तिसमयाहिया जाव दससमियाहिया, सखेज्जसमयाहिया, श्रसखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेण तेत्तीस सागरोवमाइ ठिती पण्णत्ता । तेण पर वोच्छिण्णा देवा य देवलोगा य - 'सच्चे ण एसमट्टे" ॥ १८१. तए ण ते समणोवासगा समणस्स भगवो महावीरस्स प्रतिय एयमट्ठ सोच्चा निसम्म समण भगव महावीर वदति नमसति, वदित्ता नमसित्ता' जेणेव इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता इसिभ - द्दपुत्त समणोवासग वदति नम॑सति, वदित्ता नमसित्ता एयमट्ठ सम्म विणएणं भुज्जो - भुज्जो खामेति । तए ण ते समणोवासया पसिणाइ पुच्छति, पुच्छित्ता अट्ठाई परियादियति, परियादियित्ता समण भगव महावीर वदति नमसति, वदित्ता नमसित्ता जामेव दिस पाउब्भूया तामेव दिस पडिगया ॥ १८२ भतेति । भगव गोयमे समण भगव महावीरं वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता एव वयासी - पभू ण भते । इसिभद्दपुत्ते समणोवासए देवाणुप्पियाण अतिय मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइत्तए ? नो इणट्टे समट्टे गोयमा ! इसिभद्दपुत्ते समणोवासए बहूहि सीलव्वय-गुण' - वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासेहि ग्रहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाण भावेमाणे बहूइ वासाइ समणोवासगपरियाग पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए सलेहगाए ग्रत्ताण भूसेहिति, भूसेत्ता सद्वि भत्ताइ अणसणाए छेदेहिति, छेत्ता ग्रालोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे काल किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणा १ भ० ११।१७६| २. पुण (अस) । ३ भ० ११४२१ ४ स० पा० - त चेव जाव तेण । ५ सच्चमेसे अट्ठे (क, ख, ता, ब, म) 1 ६ नमसित्ता उट्ठाते उट्ठेति २ (ता) । ७ गुणव्वय (ख, व, म) |
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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