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________________ सत्तम सत (सत्तमो उद्देसो) २६५ गोयमा | सव्वत्थोवा जीवा कामभोगी, नोकामी नोभोगी अणतगुणा, भोगी अणतगुणा' । दुब्बलसरीरस्स भोगपरिच्चाय-पदं १४६. छउमत्थे ण भते । मण से जे भविए अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जि त्तए, से नूण भते ! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेण, कम्मेण, बलेण, वीरिएण, पुरिसक्कार-परक्कमेण विउलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्तए ? से नूण भते । एयमट्ठ एवं वयह ? गोयमा । णो तिणटे समटे । पभू ण से उट्ठाणेण वि, कम्मेण वि, वलेण वि, वीरिएण वि, पूरिसक्कार-परक्कमेण वि अण्णयराइ विपुलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी, भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे, महापज्ज वसाणे भवइ ।। १४७ आहोहिए' ण भते । मणूसे जे भविए अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जित्तए, से नूण भते । से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेण, कम्मेण, बलेण, वीरिएण, पुरिसक्कार-परक्कमेण विउलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्तए? से नूण भते । एयमट्ठ एव वयह ? गोयमा । णो तिणटे समटे । पभू ण से उट्ठाणेण वि, कम्मेण वि, बलेण वि, वीरिएण वि, पुरिसक्कार-परक्कमेण वि अण्णयराइ विपुलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी, भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे, महा पज्जवसाणे भवइ ।। १४८ परमाहोहिए ण भते । मणूसे जे भविए तेणेव भवग्गहणेण सिज्झित्तए जाव' अत करेत्तए, से नूण भते । से खीणभोगी 'नो पभू उढाणेण, कम्मेण, बलेण वीरिएण पुरिसक्कार-परक्कमेण विउलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्तए ? से नूण भते । एयमट्ठ एव वयह ? गोयमा । णो तिणटे समटे । पभू ण से उट्ठाणेण वि, कम्मेण वि, बलेण वि, वीरिएण वि, पुरिसक्कार-परक्कमेण वि अण्णयराइ विपुलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी, भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे, महा पज्जवसाणे भवइ । १ मणत० (ता)। ५ स० पा०-एव चेव जहा छउमत्थे जाव २ मणुस्से (ता)। महा । ३ वदहा (ता, ब)। ६ तेण चेव (क, ता, व, म)। ४ अहोहिएण (ता, ब)। ७. भ० ११४४। ८ स० पा०-सेस जहा छउमत्थस्स ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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