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पचम सत (छट्ठो उद्देसो)
२१३ चेव, अप्पासवतराए चेव, अप्पवेयणतराए चेव भवइ ?
हता गोयमा ! अगणिकाए ण अहुणोज्जलिए समाणे त चेव ॥ धणुपक्खेवे किरिया-पदं १३४ पुरिसे ण भते । धणु परामुसइ, परामुसित्ता उसु परामुसइ,' परामुसित्ता ठाण'
ठाइ, ठिच्चा आयतकण्णातय' उसु करेति, उड्ढ वेहास उसु उव्विहइ।। तएण से उसू उड्ढ वेहास' उविहिए समाणे जाइ तत्थ पाणाइ भूयाइ जीवाइ सत्ताइ अभिहणइ वत्तेति लेसेति' सघाएइ सघटेति परितावेइ किलामेई', ठाणाप्रो ठाण सकामेइ, जीवियाग्रो ववरोवेड। तए ण भते । से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा । जाव च ण से पुरिसे धणु परामुसइ', 'उसु परामुसइ, ठाण ठाइ, आयतकण्णातय उसु करेति, उड्ढ वेहास उसु ° उविहइ, ताव च ण से पुरिसे काइयाए 'अहिगरणियाए, पायोसियाए, पारियावणियाए°, पाणाइवायकिरियाए-पहि किरियाहि पुढे । जेसि पि य ण जीवाण सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए ते वि य ण जीवा काइयाए जाव पहि किरियाहिं पुढा"। एव धणुपट्टे पचहि किरियाहि, जीवा पहि, ण्हारू पहि, उसू पहि-सरे,
पत्तणे, फले, हारू पचहि ॥ १३५ अहे ण से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए, भारियत्ताए, गुरुसभारियत्ताए अहे वीससाए
पच्चोवयमाणे जाइ तत्थ पाणाइ जाव" जीवियाओ ववरोवेइ ताव च ण से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा | जाव च ण से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेइ ताव च ण से पुरिसे काइयाए जाव" चउहिं किरियाहि पुढे । जेसि पि य ण जीवाण सरीरेहि धण निव्वत्तिए ते वि जीवा चउहि किरियाहि, धणुपट्टे चउहि,
१ परामसइ (व, म)। २ वेसाह ठाण (उ० १२२२)। ३ °कण्णाइय (अ, स), कण्णायय (म, उ०
१।२२)। ४ ततो (क, ता, ब, स)। ५. उसु (स)। ६ वेहासे (ता)। ७ लेस्सेति (अ, ब, स)। ८. किलोमेह उद्दवेह (भ० ८।२८७) ।। ६ स० पा०-परामुसइ जाव उव्विहइ।
१० स० पा०.-काइयाए जाव पारणाइवाय° । ११. पुढे (अ, ता, ब, म, स), पट्ठो (क)। अत्र
जीवा इति कर्तृपद बहुवचनान्तमस्ति तेन
'पुट्ठा' इति पद स्वीकृतम् । १२ धणू° (अ, ता, स), धणूपिढे (ब)। १३. अघे (ता)। १४ भ० ५।१३४। १५ भ० ५।१३४। १६ ° पुढे (अ, म, स)।