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________________ १६६ भगवई इहभवियाउयस्स पडिसवेदणयाए परभवियाउयं पडिसवेदेइ, परभवियाउयस्स पडिसवेदणयाए इहभवियाउय पडिसवेदेइ । एवं खलु एगे जीवे एगेण समएण दो आउयाइ पडिसवेदेइ, त जहा-इहभविया उय च, परभवियाउय च || ५८ से कहमेय भंते । एवं ? गोयमा ! जण्ण त अण्णउत्थिया त चेव जाव परभवियाउय च । जे ते एवमाहसु त मिच्छा, अह पुण गोयमा । एवमाइक्खामि भासामि पण्णवेमि परूवेमि-से जहानामए जालगठिया सिया-'पाणुपुबिगढिया अणतरगढिया परपरगढिया अण्णमण्णगढिया, अण्णमण्णगरुयत्ताए अण्णमण्णभारियत्ताए अण्णमण्णगरुय-संभारियत्ताए° अण्णमण्णघडत्ताए चिट्ठति, एवामेव एगमेगस्स जीवस्स वहहि पाजातिसहस्सेहिं वहइ पाउयसहस्साइ आणुपुव्विगढियाइ जाव चिट्ठति । एगे वि य ण जीवे एगेण समएण एगं आउय पडिसवेदेड, त जहा-इहभवियाउय वा, परभवियाउय वा । ज समय इहभवियाउय पडिसवेदेइ, नो त समयं परभवियाउय पडिसवेदेइ। ज समय परभवियाउय पडिसवेदेड, नो त समय इहभवियाउय पडिसवेदेइ । इहभवियाउयस्स पडिसवेदणाए, नो परभवियाउय पडिसवेदेइ । परभवियाउयस्स पडिसवेदणाए, नो इहभवियाउय पडिसवेदेइ। एव खलु एगे जीवे एगेण समएण एग आउय पडिसवेदेड, त जहा-इहभ वियाउय वा, परभवियाउय वा ॥ साउयसंकमण-पदं ५६ जीवे ण भते । जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से ण भते । कि साउए सकमइ ? निराउए सकमइ ? गोयमा । साउए सकमइ, नो निराउए संकमइ ।। ६०. से ण भते । आउए' कहिं कडे ? कहिं समाइण्णे ? गोयमा । पुरिमे भवे कडे, पुरिमे भवे समाइण्णे ।। ६१. एव जाव' वेमाणियाणं दडयो ।। ६२. से नूण भते । जे 'ज भविए जोणि" उववज्जित्तए, से तमाउय-पकरेइ, त १. म० पा०-सिया जाव अण्णमण्णघडताए। ४ विभक्तिपरिणामाद् यो यस्या योनावृत्पत्तु २. उगे (ता)। योग्य इत्यर्थ. (व)। ३. पू०प०२।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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