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________________ तइय सत (तइओ उद्देसो) १५७ १३८ पारियावणिया ण भते ! 'किरिया कइविहा पण्णत्ता'' ? मडिअपुत्ता दुविहा पण्णत्ता, त जहा-सहत्थपारियावणिप्राय, परहत्थपारि यावणिया य ।। १३६ पाणाइवायकिरिया ण भते । 'किरिया कइविहा पण्णत्ता ?'२ मडिअपुत्ता | दुविहा पण्णत्ता, त जहा-सहत्णपाणाइवायकिरिया य, परहत्थ पाणाइवायकिरिया य ॥ किरिया-वेदणा-पदं १४०. पुब्बि भते । किरिया, पच्छा वेदणा ? पुवि वेदणा, पच्छा किरिया ? मडिअपुत्ता | पुब्बि किरिया, पच्छा वेदणा । णो पुचि वेदणा, पच्छा किरिया । १४१ अत्थि ण भते । समणाण निग्गथाण किरिया कज्जइ ? हता अस्थि ।। १४२ कहण्ण भते । समणाण निग्गथाण किरिया कज्जइ ? मडिअपुत्ता | पमायपच्चया, जोगनिमित्त च । एव खलु समणाण निग्गथाण किरिया कज्जइ ॥ अंतकिरिया-पदं १४३. जीवे ण भते । सया समित एयति वेयति 'चलति फदइ घट्टइ" खुब्भइ उदीरइ त त भाव परिणमइ ? हता मडिअपुत्ता | जीवे ण सया समित एयति वेयति चलति फदइ घट्टइ खुन्भइ उदीरइ त त भाव परिणमइ ।। १४४. जाव च ण भते । से जीवे सया समित* •एयति वेयति चलति फदइ घट्टइ खुदभइ उदीरइ त त भाव ° परिणमइ, ताव च ण तस्स जीवस्स अते अत किरिया भवइ ? नो इणढे समटे । १४५. से केणद्वेण भते । एव वुच्चइ-जाव च ण से जीवे सया समित •एयति वेयति चलति फदइ घट्टइ खुन्भइ उदीरइ त त भाव परिणमइ, ताव च ण तस्स जीवस्स अते अतकिरिया न भवति ? मडिअपूत्ता | जाव च ण से जीवे सया समित१ •एयति वेयति चलति फदइ १ पुच्छा (व)। २ पुच्छा (ता, व)। ३. कह ण (अ, क, ब), कह ण (ता), कहि ण (स)। ४ समिय (अ, ता, व, म, स)। ५ वेदति (ता)। ६ चलेइ फदेइ घट्टेइ (अ, ब, स)। ७. म० पा०-एयति जाव त । ८. स० पा०-समित जाव परिणमइ । ६. तिण(अ, क, व, म, स)। १०. स० पा०-समित जाव अते । ११. स० पा०-समित जाव परिणमइ ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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