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________________ ७८ भगवई एव परूवेति - एव खलु एगे जीवे एगेण समएण दो किरियाश्रो पकरेति, जाव' इरियावहियं च, सपराइय च । जे ते एवमाह । मिच्छा ते एवमाहसु । ग्रह पुण गोयमा । एवमाइक्खामि, एव भासेमि, एव पण्णवेमि, एवं परूवेमि - एव खलु एगे जीवे एगेण समएण एक्क किरिय पकरेड, त जहा - इरियावहिय वा, सपराइय वा । समय इरियावहिय पकरेइ, नो त समय सपराइय पकरेड | जं समय सपराइय पकरेइ नो त समय इरियावहिय पकरेड । इरियावहियाए पकरणयाए नो सपराइय पकरेड । सपराइयाए पकरणयाए नो इरियावहिय पकरेइ । 11 एव खलु एगे जीवे एगेण समएण एग किरिय पकरेइ, त जहा ० - इरिया - वहिय वा, सपराइय वा ॥ उपपात-पदं ४४६. निरयगई ण भते । केवतिय काल विरहिया उववाएण पण्णत्ता ? गोयमा । जहण्णेण एक्कं समय, उक्कोसेण बारस मुहुत्ता ॥ ३४७ एवं वक्कतीपय भाणियव्व निरवसेस | ४४८ सेव भते । सेव भते त्ति जाव' विहरइ ॥ पाठो यते । अत्र च ११४२०, ४२१ सूत्रानुमारेण म पूर्ति नोतोस्ति । १. भ० ११४४४ । २. प० ६ । ३ भ० १।५१ ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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