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________________ ६४ भगवई गोयमा | सवीरिए परायिणति, अवीरिए परायिज्जति ॥ ३७४ से केणट्रेण' भते ! एव वुच्चइ-सवीरिए परायिणति ? अवीरिए परायिज्जति ? गोयमा | जस्स ण वीरियवज्झाइ कम्माइ नो बद्धाइ नो पुट्ठाइ 'नो निहत्ताइ नो कडाइ नो पट्ठवियाइ नो अभिनिविट्ठाइ° नो अभिसमण्णागयाइं नो उदिण्णाइ-उवसताइ भवति से ण परायिणति । जस्स ण वीरियवज्झाइ कम्माइ वद्धाइ० पुट्ठाइ निहत्ताइ कडाइ पट्ठवियाइ अभिनिविट्ठाइ अभिसमण्णागयाइ° उदिण्णाइ णो उव सताइ भवति से ण पूरिसे परायिज्जति, से तेणद्वेण । गोयमा । एव वुच्चति-सवीरिए परायिणति, अवीरिए परायिज्जति ॥ वीरिय-पदं ३७५. जीवा ण भते ! कि सवीरिया ? अवीरिया ? गोयमा | सवीरिया वि, अवीरिया वि ॥ ३७६ से केणठेण भते । एव वुच्चइ-जीवा सवीरिया वि ? अवीरिया वि ? गोयमा । जीवा दुविहा पण्णत्ता, त जहा-ससारसमावण्णगा य, असंसार समावण्णगा य । तत्थ ण जे ते अससारसमावण्णगा ते ण सिद्धा। सिद्धाण अवीरिया । तत्थ ण जे ते ससारसमावण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, त जहा-सेलेसिपडिवण्णगा य, असेलेसिपडिवण्णगा य । तत्थ ण जे ते सेलेसिपडिवण्णगा ते ण लद्धिवीरिएण सवीरिया, करणवीरिएण अवीरिया । तत्थ ण जे ते असेलेसिपडिवण्णगा ते णं लद्धिवीरिएण सवीरिया, करणवीरिएण सवीरिया वि, अवीरिया वि । से तेणळेण गोयमा । एव वुच्चइ-जीवा दुविहा पण्णत्ता, त जहा-सवीरिया वि, अवीरिया वि॥ ३७७ नेरइया ण भते । कि सवीरिया ? अवीरिया ? गोयमा ! नेरइया लद्धिवीरिएण सवीरिया, करणवीरिएण सवीरिया य, अवीरिया य ।। ३७८. से केणठेण भते । एव वुच्चइ-नेरइया लद्धिवीरिएण सवीरिया ? करण वीरिएण सवीरिया य? अवीरिया य? गोयमा ! जेसि ण नेरइयाण अत्थि उट्ठाणे कम्मे वले वीरिए पुरिसक्कार१. न. पा.-केण?ण जाव परायिज्जति । ४. X (क, ता, व, म)। २. सं० पा०-पुट्ठाइ जाव नो। ५ ० वण्णया (क, ता, म)। ३. ग. पा०-द्धाइं जाव उदिण्णाई।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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