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________________ नयामपERED . . . . - -AELEमकर-स पागात मही प्रकार मानी सर्व मो कापी / भी सिधि सस्पापी हो सकती है। सरप पारा प्राणी प्रस्पेक म्पत्ति का विश्वास पाम बम सातास नि, प्रस्पक म्पतिको पोम्पी किपरम्प सत्य मापयरका मम्पास करे। सस्प मापी के लिये पोम्पक पारपेष 5 सोम 3 भय भोर हास्य का परित्याग गरेसरही सत्य की राहो सकेगी। तपा पापम्मान बिरस्पान न के गाही मुम्म कारस। मता प्रत्येक पारिको मित मधुर और सत्प मापी बने केलिपे करियर होना चाहिए / माचाम्स कर होने पर मी ! असत्य का प्रपोग पापिन परमा पारिए। पोंकि शाम में / हिनाभि मसाबाउ तोगम्मि सम्म साए मोगरिहिमो। प्रपिस्सासो पमुपायं तमा मोसं विषम्मए // 1 // मर्यात भसस्पबार सोप में सर्व पापुमोबारा मस्ति सपा मापिमान सिपे अत्यन्त प्रविणास का कारसमक्षा मपापार विनिमर्णत् असत्प मापवरमा चाहिए। सपम्प सम्प की मापण करने का प्रम्पास पागापगा तो फिर माघ सस्प के लिये मी पूर्वतया मोपण पिया या सगा ।म्प सस्प का पालन करना तो मत्यम्व संगम धिमा माष मात्प का मपण करना बसाम्प नहीं तो नि तर तो भवत्प।पौषि पापम्माम मत मारसम 4 सपकेम्पस करने की फसपा पोपे मार मापन ममममेकीकार। SIDEBAERaan: दEALEDEFSALAR
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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