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________________ Partoonxxx XXX ( 83 ) REMEETURESxxesveeMAXIMAGEXX अव इस स्थान पर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि सत्य किसे कहते हैं ? इस प्रश्न के समाधान में कहा जाता है कि है जिस प्रकार से पदार्थ हो उसे उसी प्रकार से मानने को सत्य कहते हैं / तथा प्रत्येक द्रव्य गुण पर्याय वाला माना गया है वा सत् द्रव्य का लक्षण है किन्तु द्रव्य उसको कहते हैं जो उत्पाद व्यय और ध्रौव्य गुणवाला होता है / प्रेसा कोई भी द्रव्य नहीं है जो उन तीन गुणों वाला न हो। र अनएर सिद्ध हुश्रा कि प्रत्येक द्रव्य जिस प्रकार से हो उस को उसी. प्रकार से मानना सत्य का लक्षण है / इसलिये जिज्ञासुत्रों के बोध के लिये सत्य के दो भेद कर दिये गए है.। जैसे कि द्रव्य (व्यावहारिक) सत्य और भाव सत्य / द्रव्य सत्य उस का नाम है जिसका प्रत्येक व्यावहारिक क्रियाएं करते समय ध्यान रक्खा जाए / मुख से वही वात कहनी चाहिए जिस के पूर्ण करने की शक्ति अपने में देखी जाय / असत्य विश्वास देना बहुत ही निन्ध है / जो व्यक्तियां अपने यश के लिये अन्य व्यक्तियों को असत्य विश्वास / देती है वे अन्त में निज अविश्वास को ही उत्पन्न कर लेती है फिर वे चाहे सत्य कथन ही करें, लोग सहसा उन पर विश्वास नहीं करते। फिर उन का नाम जनता में असभ्यता से लिया जाता है न उन की सहायता के लिये ही फिर कोई न उद्यत होता है / अपितु उन को फिर नाना प्रकार के कष्टों A का सामना करना पड़ता है / अत एव व्यावहारिक कार्यो म भी असत्य का प्रयोग न करना चाहिए / जो व्यक्ति करते है सा है, वे व्यवहार का नाश करते है मनमाFETTERTIERY ExamxxxxAIXXXaxxnxxRTEXXXXxxxxxxXx:
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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