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________________ XIETIERRIERRENERAXIEEEEEXX सातवाँ पाठ (अहिंसावाद) प्रत्येक प्राणी की रक्षा और वृद्धि में अहिंसा एक मुख्य कारण है / यदि प्रेम संपादन करना चाहते हो ? यदि निर्वैरता के साथ जीवन व्यतीत करना चाहते हो ? यदि सुखमय 7 जीवन व्यतीत करना चाहते हो ? यदि शान्तमय जीवन व्य। तीत करना चाहते हो ? यदि जीवन विकास चाहते हो? यदि धर्म और देशोन्नति चाहते हो? यदि ब्रह्म में लीन होना चाहते हो अर्थात् निर्वाण पद चाहते हो ? तब अहिंसा भगवती के + आश्रित होजानो। it अहिंसामय जगत् ही जगदुद्धार कर सकता है नतु / a हिंसामय सुरक्षित गोवर्ग ही जगत् का उपकार कर सकता है इसके विपरीत सिंह श्रादि हिंसक पशु जगत्ररक्षण में असमर्थ होते हैं / इसलिये ससार से पार होने के लिये अहिंसा देवी की शरण ग्रहण करनी चाहिये / जिस प्रकार पृथिवी प्राणिमात्र के लिये आधारभूत है। ठीक उसी प्रकार अहिंसा भगवती प्राणिमात्र के लिये, श्राश्रयभूत है। जिस प्रकार श्रात्मा में लान तदात्म सम्बन्ध से.विराजमान है ठीक उसी तरह अहिंसा भगवती मोक्षेच्छु श्रात्मा के लिय तदात्म सम्बन्ध से सम्बन्धित होती है। इसीलिए शानी श्रात्माओं ने भाषण किया है कि-- ECEIXXXXXXXXXXXXXX XEXISEXIEAXISEXXX
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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