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________________ RELExaxeKIYOXXXGARH PERMANCAREERIMENDMAMANANEXANEXHotxxnnn........ उ०-पॉच / 1 औदारिक 2 वैक्रिय 3 आहारक 4 तैजस और 5 कार्मण। प्र०-औदारिक शरीर किसे कहते है ? उ०-उदार-प्रधान अर्थात् जिस शरीर से मोक्ष पाया जा सके तथा जो मांस अस्थि आदि से बना हुआ हो। प्र०-वैक्रिय शरीर किसे कहते हैं ? उ०—जिससे एक से अनेक और विचित्र विचित्र रूप यन सके। प्र०-श्राहारक शरीर किसे कहते है? उ०प्राणि दया, तीर्थकरों की ऋद्धि का देखना, सूदम पदार्थ का जानना, संशय छेदन करना, इत्यादि कारणों के होने पर चौदह पूर्वधारी मुनिराज योगवल से जो शरीर बनाते है, उसे आहारक शरीर कहते हैं। . प्र०-तैजस शरीर किसे कहते हैं ? उ०-औदारिक वैक्रिय शरीर को तेज (कांति) देने वाला, आहार को पचाने वाला और तेजोलेश्या का साधक में शरीर तैजस शरीर कहलाता है। प्र०-कार्मण शरीर किसे कहते हैं ? उ०-झानावरण आदि कर्मों का खजाना और माहार को शरीर में ठिकाने ठिकाने पहुँचाने वाला। प्र०-अंगोपांग नाम कर्म किसे कहते हैं ? aa_ उ०-जिस कर्म के उदय से अंग (शिर, पैर, हाथ भादि) और उपाग (अंगुलि, नाक, कान आदि) यने / प्र०-यन्धन नाम कर्म किसे कहते हैं ? NEXAXEIRECENTRENT T
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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