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________________ EENEEnाय Aझिय प्राधारक यस और कामव समात) सनर नाम कर्म (अनअपम नाराषअपम नाराच अर्थ मारा कीसा Bीर सेवा) सस्पान नाम कर्म (समरस ध्यप्रोम परिमरख सापि, हम बामन र सस्पान) 5 वर्षमाम कर्म (कास रा माल पीसा भीरत) 2 पंपमाम कर्म / (पुरम दुरमि) रस नाम कर्म (विह, का, कपास, मम्स मपुर) 8 प नाम कर्म (गुरु म, मानर, शीठ का चिप और सत) मानुषी नाम कर्म (देवगत्पानुपूर्षी / मनुष्यगत्यामुपूर्वी. तिचगस्पानुपूर्षी मारफगत्यामुपूर्वी) २विहायोगति नाम कर्म (राम और भयम विहायोगति)" 1 परापात सासोन्मास 1 मावाप परपोत गुरुस १तीर्थकर नाम कर्म निर्मातरम्पपात १.असायक (स मादर पर्याप्त प्रत्येक स्पिर, शुम समग सुस्प, मादेपर, यशकीर्ति) 1. स्थावर वयक (स्पापसम भपर्याप्त साधारण मस्पिर अयम धर्मप स्पर, ममारेप प्रपया कीर्सि) म ~गति नाम मरिसेपते -जिस गप से प्रारमा मनुप्य मारिगतियों में जाये। प्रा-मातिमाम धर्म पिसेपासे! 7.--शिसके पप से प्रारमा पम्पिदीन्द्रिप पीमित्रप परिमित्रप और परदिप कहा जाये। म -शरीर माम कर्म किसे पाते। --जिसके बप मे परीरमा प्र शरीर के किसमे मेर काoaEEEEEEwee ज -IALLL
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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