________________ EXERIENDR.xxxATER XKamJABSCR3Rana EXCEXXXXXROTEIREXXXVERMERARMS कुछ लड्डुओं में मधुर रस अधिक रहता है, कुछ लड्डुश्री से में कम / कुछ लड्दुओं में कटु रस अधिक, कुछ लड्डुओं में कम / इस तरह मधुर, कटु, श्रादि रसों की न्यूनाधिकता देखी जाती है। इसी प्रकार कुछ कर्म दलों में शुम रस आधिक, कुछ कर्म दलों में कम, कुछ कर्म दलों में अशुभ रस अधिक, कुछ कर्म दलों में कम / इस तरह विविध प्रकार के अर्थात् तीव तीव्रतर, तीव्रतम, मन्द, मन्दतर, मन्दतम, शुभ अशुभ रसों का कर्म पुद्गलों में बन्धना अर्थात् उत्पन्न होना 'रसवन्ध' कहलाता है। शुम कमाँ का रस ईख, द्राक्षा श्रादि रस के सटश मधुर होता है, जिसके अनुभव से जीव खुश होता है। अशुभ कर्मों का रस नींव आदि के रस के सदृश कडुवा होता है, जिस के अनुभव से जीव बुरी तरह घबड़ा उठता है। तीव, तीव्रतरादि को समझने के लिये दृष्टांत के तौर पर ईख या नींव का चार सेर रस लिया जाय इस रस को स्वाभाविक रस कहना चाहिये / श्रॉच के द्वारा औटा कर जव चार सेर की जगह तीन सर रस वच जाय तो उसे तीव्र कहना चाहिये और औटा कर जव एक सेर वच ज य तो तीव्रतम कहना चाहिये / ईख / या नींव का एक सेर स्वाभाविक रस लिया जाय, उस में एक सेर पानी मिलाने से मन्दरस वन जायगा / दो सेर पानी मिलाने से मन्दतर रस बनेगा।तीन सेर पानी मिलाने से मन्द तम रस बनेगा / कुछ लड्डुओं का परिमाण दो तोले का, कुछ To लड्डुओं का छटांक का और कुछ लड्डुओं का परिमाण पाव भर का होता है। उसी प्रकार कुछ कर्म दलों में परमाणुओं की संख्या A अधिक रहती है, कुछ कर्म दलों में कम / इस तरह भिन्न भिन्न / Amxmxam.