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________________ DECE -- म भना पादिपे। सेकिपात नाशपदार्य-सोग, मिर्च पीपत मादि से पने येसरामों का स्वमायनित प्रकार बायुमार करने का पित नायक पदापों से बने पसरामो का M समाव जिस प्रकार पित्त के पूर करने का कफ नारा " पापों से बने पेवरामों का समाप जिस प्रकार कफ : नए फरमे का उसी प्रकार प्रारमा के द्वारा प्राय किए। एकपकर्म पुरतों में भारमा रेशान गुपके पाठ करने की राशि उत्पपोती कुपकर्म पुलमों में भारमा केपर्गम गुण कोरफले की गति सत्पन होती धर्म पुरसों में मात्मा " के भामद गुपको दिपा देने की शक्ति पैदा होती है काम, पुरमों में प्रात्मा की भगत सामप्प को पाने की बात पैदा होती है। इस तरा मित्र मिस फर्म पुगलों में मिड मित्र प्रकार की प्रकृतियों (शकियों) के पापको भर्याद सत्पर होने को प्रहति पाप करते हैं। कासरह एक सप्ताह तक पते कासरा एक पर। सफ कुसमरा एक महीने तपासवरा पररामो की प्रदीपरी कास मर्यावाहोती।काल मर्यादाको स्पितिकरते। स्पिति के पूर्व होने पर समपने अपन स्वमाएको को मर्यात् बिमा गाते हैं। सोमबार कोई धर्म रस प्रारमारे साप सत्तर होगा मोरी सागरोपम तक कोई पीस कोराकोसी सागरोपम तकको मतमार्च तक पते है। इस तरा पुरेपुरे कर्म बसों में पुरीएपी स्थितियों का मर्यात अपने सामाषा त्यामनकर मारमा के साप बरे पले की काम मचामोकामाप प्रदत्तपोमा स्पिति बन्य कामासा स्पिति के पूर्वोने परकर्मबल पर स्वभाष को पोरते-भाग्मा से हरेगा। सामनार रजालनालय सामDEST
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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